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________________ मेरे तीन खणाने प्रेम ऑन अन-अति और अंतिम छोबा वे मेरे पास आए। मैंने उनसे कहा कि अब किताब खतम हो गई कि उसमें और कुछ लिखा है? कुछ और लिखा हो जल्दी कर लो, नहीं तुम खतम हो जाओगे। शिवानंद का शरीर देखा है? फोटो देखी? ये उपवासी मालूम पड़ते हैं? शिवानंद को चलाने के लिए दो आदमियों के हाथ कंधों पर रख कर उनको उठाना पड़ता था। पहले उनकी फोटो तो देखते, फिर किताब पढ़ते। पर लोगों को कोई होश से जीने की कुछ नहीं है; कुछ भी पकड़ लेते हैं; कुछ भी पकड़ लेते हैं। और शिवानंद की मृत्यु कैसे हुई? मस्तिष्क में रक्तस्राव से। स्टैलिन की हुई, समझ में आता है। शिवानंद की मस्तिष्क में रक्तस्राव से मृत्यु का मतलब है कि चित्त में बहुत तनाव, अशांति। स्टैलिन की हो, बिलकुल मौजूं है बात, जमती है। राजनीतिज्ञ किसी और ढंग से मरे, चमत्कार है। लेकिन संन्यासी ऐसे मरे तो भी चमत्कार है। होश रखो; सुनो, समझो, अपने जीवन को पहचानो, और अपने मार्ग एक-एक कदम आहिस्ता-आहिस्ता उठाओ। और ध्यान रखो कि अति न हो जाए। तो मैंने उन सज्जन को कहा कि सात घंटे सोना शुरू करो। अगर परमात्मा को ऐसा खयाल होता कि तामस की बिलकुल जरूरत ही नहीं तो तामस उसने बनाया ही न होता। विश्राम की जरूरत है, तामस में कुछ निंदा योग्य नहीं है। निंदा योग्य तभी है जब तामस में अति हो जाए। अब कोई दिन भर ही सोने लगे तो फिर निंदा योग्य है। लेकिन निंदा तामस के कारण नहीं है, निंदा अति के कारण है। अन्यथा तामस की भी जरूरत है, क्योंकि तामस विश्राम का सूत्र है। राजस श्रम का सूत्र है तो तामस विश्राम का सूत्र है। और दोनों संतुलित हों तो तुम्हारे जीवन में सत्व की ज्योति जलेगी। त्रिकोण, ट्रायंगल समझ लो। नीचे के दो कोण तामस और राजस, और ऊपर का उठा हुआ कोण सत्व। जब दोनों संतुलित हो जाते हैं, तब तुम्हारे भीतर संतुलन के माध्यम से धीरे-धीरे सत्व का स्वर आना शुरू होता है। सत्व का अर्थ है परम संतुलन, अल्टीमेट बैलेंस। इसलिए लाओत्से कहता है, संसार में अति कभी नहीं। 'और तीसरा, संसार में प्रथम कभी मत होना।' वही दौड़ लोगों को परमात्मा से वंचित करवा देती है। ऐसा हुआ कि एक राजनीतिज्ञ मित्र के साथ मैं एक यात्रा पर था। वही कार ड्राइव कर रहे थे। जाते थे हम जबलपुर से इलाहाबाद की तरफ। बीच में एक जगह मुझे ऐसा लगा कि रास्ता कुछ गलत पकड़ लिया है। मील के पत्थर देखे तो हम जा रहे थे छतरपुर की तरफ। वह तो अलग रास्ता है। मैंने उनसे कहा, क्या कर रहे हो तुम, भूल गए? उन्होंने कहा, भूला नहीं हूं। एक आदमी कार उनके आगे निकाल ले गया। और वह जा रहा है छतरपुर। और जब तक वे उसकी कार को पीछे न कर दें, अब इलाहाबाद नहीं जा सकते। दो घंटे लगे। आखिर उसको पीछे करके रहे। जब उसको पीछे कर दिया तब उन्हें शांति मिली। दो घंटे में लौट आए, क्योंकि इलाहाबाद जाना एकदम जरूरी था। लेकिन जिंदगी में ऐसा मामला नहीं है। रास्ते इतने साफ नहीं हैं कि तुम छतरपुर गए कि इलाहाबाद गए: जिंदगी में रास्ते बहुत जटिल हैं। और जिंदगी में रास्ते ऐसे हैं कि उन पर वापस नहीं लौटा जा सकता; गए तो गए। और तुम सब यही करते रहे हो। एक आदमी के पास तुमने देखी कि कार है; अब तुम्हारे पास भी होनी चाहिए। अब तुम एक दौड़ में लग गए। तुम भूल ही गए कि कार की तुम्हारी जरूरत थी? या इसके पास है इसलिए जरूरत पैदा हो गई! अब तुम अपना सारा जीवन दांव पर लगा कर पहले एक कार...। तब तक कोई ने बड़ा मकान बना लिया। अब यह कैसे हो सकता है कि तुम और छोटे मकान में रह जाओ। अब तुम बड़ा मकान बनाने लगे। तब तक कोई किसी फिल्म अभिनेत्री से शादी करके आ गया। रास्ता चलता ही जाता है। और लोगों को तुम्हें पीछे करना है। 21।
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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