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________________ स्वयं का ज्ञान ही ज्ञान है इसे थोड़ा समझें। क्योंकि शक्ति जब उपयोग की जाती है तो क्षीण होती है। इसलिए बाहर जो भी लड़ता है वह रोज क्षीण होता है। वह भला आज आपकी गर्दन पर सवार हो जाए, लेकिन गर्दन पर सवार होने में उसने शक्ति खोई है, क्योंकि शक्ति का उपयोग किया है। गर्दन पर सवार होने के पहले वह जितना शक्तिशाली था उतना अब नहीं है, मात्रा कम हो गई है। इसलिए अगर नीचे का आदमी, जो नीचे गिर पड़ा है, होशियार हो, तो लड़ने की जरूरत नहीं है, वह दूसरे आदमी को ही लड़ा कर हरा दे सकता है। तो जापान में ताओ के प्रभाव में एक कला विकसित हुई है, जूडो। जूडो इस बात की कला है कि जब आप पर कोई हमला करे तो आप उसको उकसाएं कि वह हमला करे, आप उसको सब भांति उकसाएं कि वह पागल हो जाए, और आप शांत रहें। और जब वह हमला करे तो आप उसके हमले को पी जाएं। वह आपको घूसा मारे तो आपका हाथ भी रेसिस्ट न करे, आप हाथ भी अकड़ाएं न कि उसके घूसे को रोकना है। आप हाथ को गद्दी की तरह, तकिए की तरह बना लें कि उसका धूसा हाथ पी जाए। जूडो की कला कहती है कि उसके घूसे से जो ताकत आ रही थी वह आपका हाथ पी लेगा। और यह सच है। क्योंकि जब आप हाथ को रोक लेते हैं शक्ति से, तो आपकी हड्डी जो टूट जाती है वह उसकी ताकत से नहीं टूटती, आपके रेसिस्टेंस से टूटती है। आपका जो अकड़ापन है वह तोड़ देता है। अगर आप बिलकुल अकड़े न हों...। देखें, एक शराबी सड़क पर गिर पड़ता है। आप गिर कर देखें! आप हड्डी-पसली तोड़ कर घर आ जाएंगे। शराबी जरूर कोई कला जानता है जो आप नहीं जानते। क्योंकि वे कई दफे गिर रहे हैं, और कुछ नहीं हो रहा; सुबह वे फिर दफ्तर चले जा रहे हैं मजे से। न कोई हड्डी टूटी, न कोई बात हुई। आखिर शराबी कौन सी कला जानता है जो आप नहीं जानते? और वे बेहोशी में गिरे थे, उनकी ज्यादा हड्डियां टूटनी चाहिए थीं। आप होश में गिरे हैं, आपकी हड्डियां नहीं टूटनी थीं। लेकिन जब आप होश में होते हैं तो गिरते वक्त आप रेसिस्टेंस से भर जाते हैं; आप अकड़ जाते हैं। आप बचाव की कोशिश करने लगते हैं। उस कोशिश में और जमीन की टक्कर में हड्डी टूट जाती है। शराबी को पता ही नहीं है कि वे गिर रहे हैं, कि जमीन उन पर गिर रही है, या कुछ हो रहा है। वे ऐसे गिरते हैं, इतनी सरलता से, बिना किसी विरोध के, कि जमीन उन्हें नुकसान नहीं पहुंचा पाती। भीतर जो यात्रा है वह यात्रा बाहर की यात्रा से बिलकुल भिन्न है। बाहर आप लड़ेंगे, आपकी शक्ति क्षीण हो रही है, आप कमजोर हो रहे हैं। आप दिखाई पड़ेंगे जीत कर कि बड़े शक्तिशाली हो गए हैं; लेकिन आप कमजोर हो गए हैं, आपने कुछ खोया है। भीतर आप शक्ति का बिलकुल उपयोग न करें। कोई उपयोग की जरूरत भी नहीं है। शक्ति को मौजूद रहने दें, और आपकी शक्ति भीतर बढ़ती जाएगी। बिना उपयोग किए हुए शक्ति एक आंतरिक संपदा बन जाती है, और बिना उपयोग किए हुए शक्ति शांति बन जाती है। शक्ति का जो बिना उपयोग किया हुआ रूप है उसका नाम ही शांति है। शांति कोई नपुंसकता नहीं है। वह कोई कमजोरी का नाम नहीं है; वह महाशक्ति का नाम है। लेकिन जिसका उपयोग नहीं किया गया, जिसने अपना घर नहीं छोड़ा, जो अपने घर में ही विराजमान है, जो बाहर नहीं गई; जिसमें तरंगें नहीं उठीं, ऐसी झील है। महाशक्ति उपलब्ध होती है, लेकिन वह शक्ति उपयोग से उपलब्ध नहीं होती, अनुपयोग से। इसलिए लाओत्से का सारा जोर नॉन-एक्शन पर है। वह कहता है कि तुम जितना क्रिया को शांत कर दो, उतने महाशक्तिशाली हो जाओगे। और इस महाशक्ति में स्वयं का जानना और स्वयं की जीत अपने आप घटित हो जाती है। यह कोई लड़ाई नहीं है। यह तो सिर्फ शक्ति की मौजदगी में घट जाता है।
SR No.002374
Book TitleTao Upnishad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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