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________________ स्वर्ग और पृथ्वी का आलिंगन बहुत सी चीजों के नाम हैं और वे हमारे मन में भरे हैं। जब आप परमात्मा का स्मरण करते हैं तो इस भरे हुए नामों की कतार में एक नाम और जोड़ देते हैं। इसमें पत्नी का नाम है, बेटे का नाम है, मित्रों का नाम है; दुकान, बाजार, सामान, नोट, रुपया, बैंक, इसमें सब नाम हैं। इस सारे नामों की भीड़ में राम को और आप डाल देते हैं। और इसलिए स्वभावतः ये जो पुराने नाम हैं, जो काफी जम कर बैठे हैं, ये उसको नहीं जमने देते; वह राम को निकाल बाहर करने की वे कोशिश करते हैं। आप कितना ही राम-राम कहो, बीच में पत्नी का नाम आता है, पति का नाम आता है, बेटे का नाम आता है; बाजार, दुकान, सब बीच में आ जाता है। वे जो पुराने जमे हुए नाम हैं, वे इस नए प्रतियोगी को भीतर नहीं बैठने देना चाहते। और यह प्रतियोगी खतरनाक है, क्योंकि यह सबको बाहर करना चाहता है। सारी भीड़ इकट्ठी होकर इसको बाहर करती है। अगर आपने कभी भी नाम-जप का उपयोग किया है तो आपको पता होगा कि कैसी कलह भीतर मच जाती है। लाओत्से का मानने वाला नए नाम को भीतर नहीं डालता, सिर्फ पुराने नामों को बाहर निकालता है। वह उलीचता है, भीतर नहीं डालता। वह उस घड़ी की प्रतीक्षा करता है जब भीतर कोई भी नाम नहीं रह जाए। जब भीतर कोई नाम नहीं रह जाएगा तब वह कहेगा ताओ उपलब्ध हुआ, ताओ का स्मरण हुआ। यह परमात्मा का स्मरण है। अनाम हो जाना परमात्मा का स्मरण है। यह प्रक्रिया बिलकुल उलटी हुई। आप जबरदस्ती कर रहे हैं एक नाम को भीतर डालने की। ध्यान रहे, एक तो जबरदस्ती में आप सफल न होंगे, सिर्फ परेशान होंगे; और अगर दुर्भाग्य से सफल हो गए, तो जिस नाम को इतनी आप जबरदस्ती से लाए हैं, उससे कुछ आनंद न पा सकेंगे। वह जबरदस्ती के बाद जो सफलता होगी, मुर्दा होगी; और जो सन्नाटा आएगा, वह जीवंत न होगा, मरघट का हो जाएगा। इसलिए अक्सर जो लोग नाम-जप जबरदस्ती थोपने की कोशिश करते हैं, एक तो सफल नहीं होते, अगर कभी सफल हो जाते हैं तो उनका नाम-जप मूर्छा बन जाता है; वे सिर्फ मूछित हो जाते हैं। जब वे जबरदस्ती एक नाम को स्थापित कर देते हैं तो तत्काल गहरी तंद्रा में खो जाते हैं; वह मुर्दा शांति उन्हें पकड़ लेती है। आपका मकान पहले से ही काफी भरा हुआ है; इस भरे हुए मकान में परमात्मा को निमंत्रण देना जरा भी उचित नहीं। लाओत्से कहता है, तुम मकान खाली कर लो। और वह परमात्मा बाहर से आने वाला भी नहीं है कि तुम उसे निमंत्रण दो। तुम्हारा मकान भरा है, इसलिए वह दिखाई नहीं पड़ता। तुम मकान खाली करो। वह जो खालीपन है मकान का, वही है वह; वह जो तुम्हारे भीतर खालीपन है, वही है वह। वह कोई अतिथि नहीं है जो बाहर से आएगा; वह तुम्हारे भीतर का खालीपन है, तुम्हारे भीतर की शून्यता है, जो तुम्हारी भरी हुई चीजों में दब गई है। उन्हें तुम बाहर कर दो, वह प्रकट हो जाएगी। शून्यता को भीतर उपलब्ध कर लेना लाओत्से के मानने वाले के लिए ध्यान है। इसलिए लाओत्से कहता है, 'ताओ परम है; उसका कोई नाम नहीं है। वह एक गैर-तराशी लकड़ी की भांति है, जिसका कोई भी उपयोग नहीं-कोई उपयोग कर नहीं सकता।' यह बहुत मजे की और लाओत्से की बड़ी अनूठी धारणा है, और बहुत गहरी है। लाओत्से कहता है कि वह जो तुम्हारे भीतर छिपा हुआ परमात्मा या ताओ या धर्म या आत्मा-जो भी नाम हम देना चाहें-वह गैर-तराशी लकड़ी की भांति है। एक तो तराशी हुई लकड़ी है जिसकी कीमत हो जाती है। एक लकड़ी को तराशा, एक मूर्ति बन गई। अब इसकी कीमत है, अब इसका मूल्य है। एक लकड़ी को तराशा, तो कोई कलात्मक कृति बन गई। अब इसका मूल्य है। लाओत्से कहता है कि तराशना ही आदमी की विकृति है; तुमने जितना अपने को तराशा है, उतना तुम मूल्यवान तो बन गए हो, लेकिन तुमने स्वभाव खो दिया। तराशे हुए आदमी हो, तुम्हारी कीमत है बाजार में। स्वभावतः, जितना तराशा हुआ आदमी हो, उतनी बाजार में कीमत है। कितना शिक्षित, कितना सुसंस्कृत, कितना शिष्ट, कितना सभ्य, कितना जानता है, कितना व्यवहार-कुशल-उतना तराशा हुआ आदमी है, उतनी उसकी कीमत है।
SR No.002374
Book TitleTao Upnishad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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