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________________ ताओ है परम स्वतंत्रता 113 यह बहुत अदभुत बात है। लाओत्से यह कह रहा है कि इस जगत में तुम कुछ भी करो, यह जगत हर हालत में तुमसे प्रसन्न है। हर हालत में, अनकंडीशनल, कोई शर्त नहीं है कि तुम ऐसा करो तो अस्तित्व प्रसन्न होगा, और तुम ऐसा नहीं करोगे तो अस्तित्व नाराज हो जाएगा। अस्तित्व हर हालत में प्रसन्न है। तुम जो करो, अस्तित्व तुम्हें उसी तरफ बहाने के लिए सारी शक्ति देने को तैयार है। तुम अस्तित्व के ही विपरीत चलो तो भी अस्तित्व तुम्हें अपनी ऊर्जा देने को तैयार है— प्रसन्नता से । कहीं कोई खिन्नता नहीं है। इस लिहाज से लाओत्से अनेक धर्मगुरुओं से बहुत गहरे उठ जाता है, बहुत ऊपर उठ जाता है। क्योंकि अगर हम और धर्म की बातों को समझें तो ऐसा लगता है कि ईश्वर की शर्तें हैं। ऐसा लगता है कि तुम अगर अच्छा कर्म करोगे तो ईश्वर प्रसन्न होगा, बुरा कर्म करोगे तो ईश्वर अप्रसन्न होगा। लेकिन लाओत्से कहेगा, बेहूदी बात है। ईश्वर भी अप्रसन्न हो सके तो तुम में और ईश्वर में कोई भेद न रहा । और अगर ईश्वर भी शर्त रखता हो, कि यह शर्त तुम पूरी करोगे तो मैं राजी और यह शर्त तुम पूरी नहीं करोगे तो मैं नाराजी, तो फिर इस ईश्वर और हमारे बीच भी लेन-देन हो गया। जीसस की एक कहानी इस अर्थ में बड़ी महत्वपूर्ण है। और इसीलिए ईसाइयत अब तक उस कहानी को नहीं समझ पाई। और समझ नहीं पाएगी; क्योंकि लाओत्से के बिना उस कहानी को समझना एकदम असंभव है। कुछ ऐसा मजा है कि महावीर को समझना हो तो बहुत दफे महावीर को सीधा समझने वाला नहीं समझ पाता ; कभी कोई सूत्र लाओत्से से मिलेगा, जो महावीर को खोलता है; कभी कोई सूत्र जीसस से मिलेगा, जो महावीर को खोलता है। कभी महावीर में कोई सूत्र मिलेगा, जो जीसस की कहानी को एकदम प्रकाशित कर देता है। असल में जीसस, मोहम्मद, कृष्ण, क्राइस्ट या लाओत्से, इस तरह के लोग उस परमात्मा की एक झलक देते हैं; वह झलक हमेशा अधूरी होगी। क्योंकि परमात्मा विराट है। लाओत्से जैसा व्यक्ति भी उसकी झलक देगा तो वह एक झलक ही होगी। वह झलक अधूरी होगी। कभी किसी दूसरे की झलक उसको पूरा कर जाती है; कभी किसी दूसरे की झलक में उसका अधूरापन पहली दफा पूरा होकर दिखाई पड़ने लगता है। जीसस की कहानी है, जो ईसाइयों के लिए कठिनाई का कारण रही है और जो अब तक भी उसको सुलझा नहीं पाए। । और बिना इस सूत्र के कभी सुलझा भी न पाएंगे। लेकिन धार्मिक लोग, धर्मों से बंधे लोग, एक-दूसरे की तरफ से कुछ भी सहायता लेने को तैयार नहीं होते। जीसस को मानने वाला यह तो मानने को तैयार होगा ही नहीं कि लाओत्से से जीसस साफ होंगे। वह यह मानने की कोशिश जरूर करेगा कि लाओत्से और जीसस में दुश्मनी है। दोस्ती तो मानने को तैयार नहीं हो सकता है। क्योंकि दुश्मनी पर संप्रदाय खड़े होते हैं; दोस्ती पर तो संप्रदाय गिर जाएंगे। दुश्मनी पर चर्च खड़े होते हैं; दोस्ती पर चर्चों का कोई उपाय न रहेगा। एक चर्च का दरवाजा दूसरे मंदिर में खुल जाएगा। बहुत कठिनाई हो जाएगी। जीसस ने कहानी कही है कि एक धनपति ने अपने अंगूर के बगीचे में काम करने मजदूरों को बुलाया। सुबह बहुत मजदूर आए; लेकिन मजदूर कम थे, धनपति ने और लोगों को बाजार भेजा। और दोपहर भी मजदूर आए; लेकिन फिर भी मजदूर कम थे, धनपति ने और लोगों को बाजार भेजा। कुछ लोग सांझ ढलते-ढलते आए। लेकिन तब सूरज ढलने के करीब आ गया। कुछ तो अभी-अभी आए थे; उन्होंने हाथ में सामान भी न लिया था काम करने का। और कुछ सुबह जब सूरज उग रहा था, तब आए थे, और दिन भर पसीने से तरबतर हो गए थे और थक गए थे। फिर धनपति ने सभी को इकट्ठा किया और सभी को बराबर पुरस्कार दे दिया। जो सुबह आए थे, वे चिल्लाने लगे कि यह अन्याय है ! हम सुबह से मेहनत कर रहे हैं, हमें भी उतना ! उतना ही ? जो दोपहर आए थे, आधे दिन जिन्होंने काम किया, उन्हें भी उतना ही ? और जो अभी-अभी आए हैं, जिन्होंने कोई काम नहीं किया, उन्हें भी उतना ही ? +
SR No.002373
Book TitleTao Upnishad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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