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________________ ताओ उपनिषद भाग २ भीतर जो जगह है रिक्त, वह भी है या नहीं? तो जैसे एक आदमी घड़े को खरीद लेता है ऊपर की हालत देख कर, कारीगरी देख कर, यह भूल ही जाता है कि भीतर पानी भरने की जगह भी है? वैसे ही आदमी एक शरीर को देख कर प्रेम में पड़ जाता है। यह भूल ही जाता है कि भीतर आत्मा, स्पेस जैसी कोई चीज भी है? भीतर कोई जगह है, जहां मैं प्रवेश कर सकूँगा? नहीं, चमड़ी को देख कर, शरीर को देख कर, हड्डियों के उतार को देख कर एक आदमी प्रेम में पड़ जाता है। फिर पीछे बहुत पछताता है। फिर वह पीछे कहता है कि मैं कैसी भूल में पड़ गया। लेकिन कोई भूल नहीं, भूल इतनी है केवल कि आदमी भी शरीर से महत्वपूर्ण नहीं होता। शरीर जरूरी है। आदमी भी भीतर जितना आकाश होता है उसके, जितनी रिक्तता होती है, जितना खालीपन, विस्तार होता है, जितनी स्पेस होती है, उससे महत्वपूर्ण होता है। उसी स्पेस का नाम आत्मा है। जब हम कहते हैं कि कितनी आत्मा है आपके भीतर, तो उसका मतलब है कि कितना समा सकते हो भीतर? कितनी जगह है? अगर एक कोई जरा सी गाली दे देता है, तो भीतर नहीं समा सकती है। तो आत्मा बहुत कम है। जरा सी गाली, अगर भवन भीतर बड़ा होता, तो शायद गूंज भी न पहुंचती, पता भी न चलता कि कोई गाली दी गई है। एक जरा सा कोई पत्थर मार देता है, तो भीतर कोई जगह नहीं कि उस पत्थर को भी विश्राम मिल जाए। नहीं, तत्काल भीतर से पत्थर दो गुना बड़ा होकर वापस लौट आता है। अगर हम एक खालीपन में पत्थर फेंकें, तो खालीपन पत्थर को वापस नहीं भेजेगा। अगर हम एक दीवार में पत्थर फेंकें, तो दीवार पत्थर को वापस भेज देगी। जो आदमी प्रतिक्रियाओं में जीता है, रिएक्शंस में, उसका मतलब है भीतर खाली नहीं है। इधर हमने फेंका, वहां से वापस लौटा। वहां कोई चीज समा नहीं सकती है। वहां कोई स्थान नहीं है। लेकिन प्रेम का वास्तविक फूल तो इसी स्थान में खिलता है। फ्रायड वाले प्रेम की बात नहीं कर रहा हूं अब। अब उस प्रेम की बात कर रहा हूं, जिसे हम जानते ही नहीं हैं। अब उस प्रेम की बात कर रहा हूं, जिसमें हमारा प्रेम भी नहीं होता और हमारी घृणा भी नहीं होती। अब उस प्रेम की बात कर रहा हूं, जहां फूल और कांटे दोनों ही नहीं होते। जहां तो केवल फूल और कांटों के नीचे बहने वाली रस की धार ही रह जाती है। लेकिन वह भीतर का रिक्तपन कहां हम देखते हैं? भीतर का रिक्तपन हम नहीं देखते। . लाओत्से के पास अगर कोई नमस्कार भी करता था, तो कभी-कभी ऐसा होता था कि उसने नमस्कार की और घंटे भर बाद लाओत्से जवाब देगा कि नमस्कार! वह आदमी अब तक भूल ही चुका था कि नमस्कार भी उसने की थी। अब तक वह न मालूम कितनी बातें लाओत्से के खिलाफ सोच चुका था कि यह आदमी ठीक नहीं है। मैं नमस्कार कर रहा हूं, इसने अब तक जवाब भी नहीं दिया। लाओत्से के एक मित्र ने एक दिन लाओत्से को कहा कि यह भी कोई ढंग है! यह भी कोई शिष्टाचार है कि एक आदमी नमस्कार करता है और तुम घंटे भर बाद जवाब देते हो! लाओत्से ने कहा, कम से कम उसका नमस्कार मुझ तक तो पहुंच जाए! मेरे हृदय में मैं उसे से लूं। मेरे हृदय में वह विश्राम कर ले! इतनी जल्दी लौटा देना अशिष्टता होगी। इतनी जल्दी लौटा देना, इतना इम्पेशेंस, इतना अधैर्य, कि किसी ने कहा नमस्कार, हमने कहा नमस्कार! न हमें कोई प्रयोजन है, न उसे कोई प्रयोजन है। यह सिर्फ निपटारा है, बात समाप्त हो गई। यह झंझट खतम हुई। ऊपर से देखने पर लगेगा कि लाओत्से कैसी बात कर रहा है। लेकिन नमस्कार करने वाला भूल चुका है और लाओत्से अभी नमस्कार का जवाब दे रहा है, तो इस घंटे भर वह नमस्कार के साथ रहा। इस घंटे भर यह नमस्कार उसके प्राणों में गूंजी। यह सिर्फ प्रतिक्रिया नहीं है। यह बटन दबाई और पंखा चल गया, ऐसी यांत्रिक घटना नहीं है। यह जीवंत रिस्पांस है, रिएक्शन नहीं। 88
SR No.002372
Book TitleTao Upnishad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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