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________________ अनस्तित्व और वालीपन है आधार सब का एक बहुत अनूठे आदमी दि सादे ने अपने एक वक्तव्य में कहा है कि प्रेम एक तरह की बीमारी है। और बीमारी इसलिए कहा है कि प्रेम को तो हम निमंत्रण देते हैं और घृणा हाथ आती है। वे दोनों एक ही चीज के दो पहलू हैं, एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। तो जिससे भी प्रेम होगा, उससे घृणा का खेल चलेगा। अकेली घृणा भी नहीं टिक सकती। इसलिए अगर आप सोचते हों कि फलां व्यक्ति से मेरी सिर्फ घृणा है, तो आप भूल में हैं। क्योंकि अकेली घृणा नहीं टिक सकती। जिस व्यक्ति से आपका प्रेम शेष हो अभी, उससे घृणा टिक सकती है। अन्यथा घृणा भी नहीं टिक सकती है। अगर आपकी किसी से दुश्मनी गहरी है और घृणा भारी है, तो आप खोज-बीन करना, भीतर अभी भी प्रेम का सूत्र कहीं न कहीं बंधा है। अगर प्रेम का सूत्र बिलकुल टूट गया हो, तो घृणा का सूत्र भी टूट जाता है। इसलिए मित्र और शत्रु, दोनों से हम बंधे होते हैं। मित्र से ऊपर से प्रेम होता है, नीचे से घृणा होती है। शत्रु से ऊपर से घृणा होती है, नीचे से प्रेम होता है। लेकिन बंधन दोनों से बराबर होते हैं। यह थोड़ा कठिन लग सकता है, क्योंकि प्रेम के संबंध में हमारी बड़ी अपेक्षाएं होती हैं। लेकिन हम और जीवन के दूसरे पहलू से समझें। दिन भर एक आदमी श्रम करता है। तो होना तो यह चाहिए, जिस आदमी ने दिन भर श्रम किया है, वह रात विश्राम न कर सके। क्योंकि जिसका दिन भर का श्रम का अभ्यास है, उसे रात में नींद नहीं आनी चाहिए। लेकिन जिसका जितना श्रम का अभ्यास है, वह उतनी गहरी नींद में उतर जाता है। जिस आदमी ने दिन भर विश्राम किया है, होना तो यह चाहिए कि रात उसे गहरा विश्राम मिले, गहरी नींद आ जाए। क्योंकि दिन भर विश्राम का अभ्यास है उसका। लेकिन जिसने दिन भर विश्राम किया है, वह रात सो ही नहीं पाता। असल में, जिसने श्रम किया है, उसने श्रम का जो दूसरा विपरीत पहलू है विश्राम, वह अर्जित कर लिया। और जिसने विश्राम किया है, उसने जो विश्राम का दूसरा पहलू है श्रम, वह अर्जित कर लिया। इसलिए जिसने दिन भर विश्राम किया है, वह रात भर करवटें बदल कर श्रम करेगा। वह रात सो नहीं सकेगा। वह जो विपरीत है, उससे हम बच नहीं सकते। वह विपरीत सदा वहां खड़ा हुआ है। अगर रात विश्राम चाहिए, तो दिन में श्रम करना पड़ेगा। और जितना ज्यादा होगा श्रम, उतना विश्राम होगा ज्यादा। इसलिए मजे की बात है, जो बहुत श्रम में जीते हैं, जिन्हें विश्राम की फुर्सत नहीं मिलती, वे गहरे विश्राम को उपलब्ध होते हैं। और जिन्हें विश्राम की पूरी सुविधा है, उन्हें विश्राम ही एक समस्या हो जाती है, क्योंकि विश्राम उपलब्ध होता नहीं है। हम जीते हैं ऊपरी तर्क के सहारे। हम कहते हैं, अगर रात विश्राम चाहिए, तो दिन भर विश्राम करो। यह सीधा तर्क है। लेकिन जीवन का इससे कोई संबंध नी है। यह वही तर्क है कि अगर हम चाहते हैं किसी से प्रेम करो, तो कलह बिलकुल मत करो। वही तर्क है यह भी। लेकिन उलटा है जीवन। ठीक वैसा ही उलटा है, जैसे कि बिजली के निगेटिव और पाजिटिव छोर होते हैं, ऋणात्मक और धनात्मक विद्युत के छोर होते हैं। उन दोनों के होने से ही विद्युत की गति है और जीवन है। इसमें से एक को हम काट दें, तो दूसरा भी खो जाता है। लेकिन विपरीत को स्वीकार करना बड़ा कठिन है। और जो विपरीत को स्वीकार कर लेता है, उसे मैं संन्यासी कहता हूं, उसे लाओत्से ज्ञानी कहता है-जो विपरीत को स्वीकार कर लेता है। विपरीत को स्वीकार करने का मतलब यह है कि अगर आज आप मुझे सम्मान देने आए हैं, तो मुझे स्वीकार कर लेना चाहिए कि किसी तल पर आपके भीतर मेरे लिए अपमान भी इकट्ठा होगा ही। इससे बचा नहीं जा सकता। और अगर मैं आपका सम्मान स्वीकार कर रहा हूं, तो मुझे तैयारी कर लेनी चाहिए कि आज नहीं कल मुझे आपका अपमान भी सहना पड़ेगा। अगर इस जानकारी के साथ मैं आपके सम्मान को स्वीकार करता हूं, तो आपका सम्मान मुझे सुख न दे पाएगा और आपका अपमान मुझे दुख न दे पाएगा। क्योंकि मैं आपके सम्मान के भीतर गहरे में देख
SR No.002372
Book TitleTao Upnishad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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