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________________ ताओ उपनिषद भाग २ एक हजार हैं कहने पदख रहा है, मस्किम जानता हूं, वह यही उसकी रहस्यमयी विशेषता है : है और हम पूछ सकते हैं कि कहां है? सब जगह है और हम पूछ सकते हैं, कहां है? वही है और हम पूछ सकते हैं कि दिखाई नहीं पड़ता, हम नहीं मान सकते। क्योंकि कहीं होता, तो दिखाई तो पड़ जाता। किसको कब दिखाई पड़ा है? और जो कहता भी है कि मैं जानता हूं, वह भी कहां बता सकता है दूसरों को? हम कह सकते हैं, पागल हो गया, सपने देख रहा है, मस्तिष्क खराब हो गया है, कल्पना में डूब गया है, प्रक्षेप में पड़ गया है। क्योंकि हजार हैं कहने वाले कि दिखाई नहीं पड़ता और कभी कोई एक कहता है कि है। मालूम पड़ता है वह एक इतना अकेला पड़ जाता है। बहुत अकेला पड़ जाता है। बुद्ध या महावीर या क्राइस्ट या मोहम्मद बहुत अकेले हैं। असल में, इनसे ज्यादा एकाकी आदमी जमीन पर दूसरे नहीं हुए। इतनी बड़ी भीड़ में ये रहते हैं, महावीर को हजारों लोग घेरे रहते हैं, लेकिन बिलकुल अकेले हैं। क्योंकि महावीर जिस बात को कह रहे हैं, इनमें से कोई भी नहीं जानता। और इनमें से कोई भी नहीं मानता। यह लाओत्से जो कह रहा है, इसके पास हजारों की भीड़ लगी रही है, बाकी यह आदमी अकेला है। यह हैरानी की बात है कि लाखों की भीड़ से घिरे हुए ये लोग नितांत अकेले हैं। क्योंकि ये जो कह रहे हैं, हम सबको शक है कि हो नहीं सकता। दिखाई तो पड़ता नहीं है। पर ये आदमी प्यारे हैं, मैग्नेटिक हैं, इनके प्राणों में कोई चुंबक है कि इनकी बात पर भरोसा भी नहीं आता और फिर भी इनके पीछे हमें चलना पड़ता है। इनमें कुछ जादू है, हिप्नोटिक हैं, पकड़ लेते हैं, फिर छोड़ते नहीं हैं। मानने का मन नहीं होता, इनकार करने की इच्छा होती है। हजार बार भागते हैं, इनके खिलाफ सोचते हैं, इनसे बचने की कोशिश करते हैं। और फिर भी कुछ है कि वापस ये आदमी खींच लेते हैं। पर ये आदमी अकेले हैं। क्योंकि ये उसकी बात कर रहे हैं, जो इन्हें मौजूद मालूम पड़ता है और हमारे लिए बिलकुल गैर-मौजूद है। हमारे लिए बिलकुल गैर-मौजूद है। रामकृष्ण विवेकानंद से कहते हैं कि सुना है मैंने तू कई दिन से भूखा है। पागल, तो तू जाकर अंदर मां से मांग क्यों नहीं लेता तुझे क्या चाहिए? विवेकानंद बुद्धिमान युवक, सोच-समझ वाला। ये किस तरह की बातें रामकृष्ण करते हैं कि भीतर जाकर मां से मांग क्यों नहीं लेता! कहां है मां? कौन है मां? लेकिन यह रामकृष्ण आदमी इतने भरोसे से कह रहा है कि इसके सामने यह भी हिम्मत नहीं पड़ती कहने की कि कहां है? कौन है? कर्ज है। पिता मर गए हैं। कर्ज चुकता नहीं है। मां भूखी रहती है। इतना खाना किसी दिन बनता है कि एक ही खा सकता है, या तो मां खा ले या विवेकानंद खा लें। तो विवेकानंद कहते हैं कि फलां मित्र के घर आज मेरा निमंत्रण है, मैं वहां चला जाता हूं। ताकि मां खाना खा ले। क्योंकि एक ही खा सकता है, इतना ही खाना है। घूम कर, रास्तों पर चक्कर भूखे लगा कर हंसते हुए घर लौट आते हैं, पेट पर हाथ फेरते हैं, डकार लेते हैं कि बहुत अच्छा हुआ, मित्र के घर चला गया, अच्छा भोजन मिला, ताकि मां निश्चित रहे। रामकृष्ण को पता चलता, तो वे कहते, तू पागल है। कितना है कर्ज तेरा? तू जाकर मां से मांग क्यों नहीं लेता है? यह पागल है रामकृष्ण! कौन मां? कौन देगा? भरोसा नहीं आता, विश्वास नहीं होता। रामकृष्ण पुजारी हुए हैं। तो आठ दिन बाद ही जिस समिति ने उनको पुजारी बनाया है, जिस ट्रस्टी मंडल ने पुजारी बनाया है, उसने उन पर मुकदमा चला दिया आठवें दिन ही। बुलाए गए, कहा कि तुम आदमी कैसे हो? क्योंकि हमने सुना है कि तुम भोग लगाने के पहले खुद चख लेते हो! तो भोग पहले लगाना होता है कि पहले खुद चखना होता है? जूठा भोग लगता है? रामकृष्ण ने कहा कि मेरी मां जब मुझे खाना खिलाती थी, तो बना कर पहले खुद चखती थी, फिर मुझे देती थी। तो मैं मां को बिना चखे नहीं दे सकता। पता नहीं, खाने योग्य बना भी हो कि न बना हो। वह जो मंडल ट्रस्टियों का है, वह अपना सिर ठोंकता है-कैसी मां? मंदिर उनका है, मां की मूर्ति उन्होंने 74
SR No.002372
Book TitleTao Upnishad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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