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________________ ताओ की अनुपस्थित उपस्थिति अंधेरे में रास्ता खोजने से तुम्हारे भीतर का दीया जलेगा। रास्ता खोजोगे, खोजने से निखार आता है। टकराओगे, गिरोगे, हाथ-पैर टूटेंगे, कोई फिक्र नहीं; लेकिन आत्मा निर्मित होगी। मेरे दीए के सहारे हाथ-पैर तो बच जाएंगे, लेकिन आत्मा खो जाएगी। इसलिए बुझा देता हूं। नान-इन ने अपने संस्मरणों में लिखा है कि मैं उस आदमी को अब तक नहीं भूल पाया। यद्यपि उसने मेरे हाथ का दीया छीन लिया था और जला हुआ दीया बुझा दिया था, लेकिन वह वही आदमी था जिसने मुझे अंधेरे में धक्का दिया और मेरे भीतर के दीए को जलने की सुविधा बनाई। तो आज जब मेरे भीतर का दीया जल रहा है, तो मैं उसे ही धन्यवाद देता हूं। स्वतंत्रता। परमात्मा भी आपके हाथ में दीया दे सकता है। और तब आप दीए के सहारे कीड़े-मकोड़ों की तरह जी सकते हैं। कभी न गिरेंगे, कभी न भटकेंगे, नर्क कभी न आएगा, सीधे स्वर्ग में पहुंच जाएंगे। लेकिन जो स्वर्ग दूसरे के सहारे मिलता है, वह नर्क से भी बदतर है। क्योंकि वह स्वर्ग भी परतंत्रता होगी। जो शुभ अपना ही नहीं है, स्वयं का खोजा और जीया हुआ नहीं है, उस शुभ का होना अशुभ से भी अशुभ है। इसलिए लाओत्से कहता है कि ताओ निर्मित करता है सब, लेकिन नियंत्रण नहीं करता। इशारा नहीं करता कि ऐसे चलो। चलने की शक्ति देता है, चलने के आयाम देता है, लेकिन कहता नहीं कि ऐसे चलो। चलने की शक्ति उसकी, चलने का आकाश उसका, चलने के मार्ग उसके, अंधेरा उसका, प्रकाश उसका, चलने वाला उसका, लेकिन फिर भी इशारा नहीं करता कि बाएं चलो कि दाएं चलो। जीवन देता है, लेकिन मुक्ति जीवन का आधार बना देता है। चाहें तो यही हमारे जीवन का कष्ट हो जाएगा और चाहें तो यही हमारे जीवन का सौभाग्य हो सकता है। इस स्वतंत्रता से हम चाहें तो बड़ा सृजन हो जाए; और हमारे भीतर छिपा जो परम है, वह प्रकट हो जाए। और चाहें तो इस स्वतंत्रता को हम अपना ही अंधेरा बना लें, अपना ही नर्क; और इसमें खो जाएं और विनष्ट हो जाएं। लेकिन एक बात तय है कि जगत में परम स्वतंत्रता है। और यह परम स्वतंत्रता परमात्मा के अस्तित्व की अघोषित घोषणा है। यह मौन वक्तव्य है उसका कि मैं हं। लेकिन हम सबको यह स्वतंत्रता का खयाल ही नहीं है। हम डरते हैं, जैसा मैंने कहा, क्योंकि स्वतंत्रता का अर्थ होता है दायित्व, स्वतंत्रता का अर्थ होता है रिस्पांसबिलिटी। स्वतंत्रता का अर्थ होता है कि सभी कृत्यों के लिए अंततः मैं ही जिम्मेवार हो गया। नर्क जाऊंगा, तो किसी को दोष न दे सकंगा। मैं ही जिम्मेवार हूं। इस जिम्मेवारी से घबड़ाहट होती है। हम सब जिम्मेवारी टालते हैं एक-दूसरे पर। और कभी-कभी तो ऐसा होता है कि एक-दूसरे की जिम्मेवारी हम एक-दूसरे पर रख देते हैं। पत्नी पति पर रख देती है, पति पत्नी पर रख देता है। दोनों निश्चित हो जाते हैं कि कोई और जिम्मेवार है। उन्हें पता नहीं कि वे कैसा खेल खेल रहे हैं। एरिक बर्न ने एक किताब लिखी है : गेम्स दैट पीपुल प्ले। उसमें सारे खेलों की चर्चा है, जो आदमी खेल रहा है। यह भी एक खेल है कि हम एक-दूसरे पर जिम्मेवारी टाल देते हैं। और जिस पर हम जिम्मेवारी रख रहे हैं, वह भी हम पर जिम्मेवारी रख देता है। अब मजे की बात यह है कि जो अपनी जिम्मेवारी भी नहीं ढो सका, वह दूसरे की कैसे ढो पाएगा? लेकिन उसे पता ही नहीं है कि आपने जिम्मेवारी उस पर रखी है; आपको पता नहीं है कि उसने आप पर रखी है। इसलिए दोनों जीवन भर एक-दूसरे को दोष देते रहेंगे, बिना यह जाने हुए कि आप दोनों एक से भिखारी हैं और एक-दूसरे के सामने भिक्षा-पात्र फैलाए खड़े हैं। दोनों एक-दूसरे से मांग रहे हैं; देने वाला उनमें कोई भी नहीं है। स्वतंत्रता से भय होता है। इसलिए हम किसी तरह की गुलामी चाहते हैं। हमारा जो तथाकथित परमात्मा है—लाओत्से का नहीं हमारा जो तथाकथित परमात्मा है, वह भी गुलामी है। वह भी हमारी गुलामी है। वह भी हम उस पर ही छोड़ देते हैं रात कि अब तू ही सम्हाल। उस पर हम छोड़ना चाहते हैं कि तू ही सम्हाल। 69
SR No.002372
Book TitleTao Upnishad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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