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________________ इसलिए लाओत्से नहीं चर्चा करता कि आत्मा क्या है, क्या नहीं है। वह इतना ही कहता है, कैसे आंख की चिकित्सा हो सकती है। बस वह चिकित्सा हो जाए, तो काफी है। धर्म है-स्वयं जैसा हो जाबा एक मित्र ने पूछा है, हम धार्मिक ही क्यों ठों, जब न आदि का पता है, न अंत का, न ईश्वर-आत्मा का कोई पता है? बुद्ध पुरुष कहते हैं जिस सत्य की बात, यदि वह सत्य है, तो वे सभी को उसका अनुभव क्यों नहीं करवा पाते हैं? कोई नहीं कहता आपसे कि आप धार्मिक हों। कम से कम लाओत्से तो नहीं कहेगा। क्योंकि धार्मिक लोगों ने इतने उपद्रव किए हैं कि आप न हों, तो अच्छा है। लाओत्से नहीं कहता कि धार्मिक हों। लाओत्से तो इतना ही कहता है कि जो आप हैं, वही हों। आप पूछ सकते हैं कि वही हम क्यों हों? क्योंकि वही आप हो सकते हैं। और कुछ होने का उपाय नहीं है। हां, और कुछ होने की आप कोशिश कर सकते हैं। उस कोशिश में जीवन व्यर्थ हो सकता है। लेकिन आप कह सकते हैं कि हम जीवन को व्यर्थ क्यों न करें? कोई आपको रोक नहीं सकता। और इसीलिए बुद्ध पुरुष भी हार जाते हैं और आपको सत्य का ज्ञान नहीं करवा पाते। क्योंकि आप कहते हैं, हम सत्य का ज्ञान क्यों करें? बुद्ध पुरुष भी क्या कर सकते हैं! कह सकते हैं। जो आनंद उन्हें उपलब्ध हुआ है, जो शांति उन्होंने पाई है, जो प्रकाश उन्हें मिला है, उसकी प्यास जगाने की चेष्टा कर सकते हैं। वे प्रकाश तो नहीं दे सकते, लेकिन प्यास जगाने की चेष्टा कर सकते हैं। लेकिन आप यह भी कह सकते हैं कि क्यों हमारी प्यास जगाने की चेष्टा कर रहे हैं? लेकिन आप थोड़ा समझने की कोशिश करें। अगर आप धार्मिक नहीं होना चाहते हैं, आप यहां पहुंच कैसे गए? आपको यह प्रश्न पूछने का खयाल क्यों आया? कोई बेचैनी है भीतर, जो आपको यहां तक ले आई, और आपने इतनी कृपा की और प्रश्न लिखा। इतना कष्ट उठाया। कोई बेचैनी है भीतर। एक बात तय है कि आप कुछ खोज रहे हैं। नहीं तो आने का कोई कारण नहीं है, प्रश्न पूछने का कोई कारण नहीं है। कोई खोज है। आप क्या खोज रहे हैं? बुद्ध उसी को धर्म कहते हैं, लाओत्से उसी को ताओ कहते हैं। आपको पता हो या न पता हो, आप धर्म खोज रहे हैं। आपको यह भी पता नहीं है कि आप क्या खोज रहे हैं। थोड़ा अपने भीतर जांच-पड़ताल करें: क्या है आकांक्षा? क्या है तलाश? हमें यह भी तो पता नहीं कि हम कौन हैं, क्यों हैं, किस वजह से हैं? हमारा होना बिलकुल अकारण मालूम होता है। इस पृथ्वी पर जैसे अचानक फेंक दिए गए हैं। क्यों हैं? बेचैनी है भीतर। और वह बेचैनी तब तक समाप्त न होगी, जब तक इस अस्तित्व के भीतर अपनी जड़ों का हमें अनुभव न हो जाए। जब तक हम इस अस्तित्व और अपने बीच एक संबंध को न जान लें, तब तक हमें बेचैनी जारी रहेगी। धार्मिक होने का और क्या अर्थ है? शब्दों में जाने की कोई जरूरत नहीं है। धार्मिक होने का इतना ही अर्थ है: वह आदमी जिसने अस्तित्व और अपने बीच संबंध खोज लिया, जिसने विराट और अपने बीच नाता खोज लिया, जो अब इस जगत में एक परदेशी, अजनबी, स्ट्रैजर नहीं है। यह जगत उसका परिवार हो गया। ये चांद-तारे और सूरज उसका परिवार हो गए। अब वह अपने घर में है। धार्मिक होने का क्या मतलब है? धार्मिक होने का मतलब है कि हम कहीं परदेश में नहीं भटक रहे हैं, हम किन्हीं अजनबी लोगों के बीच में नहीं हैं; यह जगत हमारा घर है। 389
SR No.002372
Book TitleTao Upnishad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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