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________________ ताओ उपनिषद भाग २ अगर लाओत्से को ठीक से समझें, तो लाओत्से कहता है, सक्रियता ही भूल है। दौड़ ही गलत है। रुक जाना और विश्राम और निष्क्रिय में डूब जाना ही सही है। इसलिए कोई सही दौड़ नहीं होती। लाओत्से के हिसाब से कोई सही दौड़ नहीं होती। दौड़ मात्र गलत है। रुकना मात्र सही है। कोई रुकना गलत नहीं होता; लाओत्से के हिसाब से कोई रुकना गलत नहीं होता। क्योंकि कोई दौड़ सही नहीं होती। सभी सक्रियताएं गलत हैं। निष्क्रियता ही परम स्वभाव है। एक दूसरे मित्र ने पूछा है कि आप सांसारिक वासना को और आध्यात्मिक वासना को एक ही कह रहे हैं। सांसारिक वासना तो क्षुद्र चीज है। आध्यात्मिक वासना तो बहुत ऊंची, महत्व की बात है। और आध्यात्मिक वासना पानी हो, तो सांसारिक वासना छोड़नी पड़ती है। लाओत्से को अगर समझेंगे, तो लाओत्से कहता है, कोई वासना सांसारिक नहीं होती, कोई वासना आध्यात्मिक नहीं होती। वासना संसार है और निर्वासना अध्यात्म है। इसलिए सांसारिक वासना का कोई मतलब नहीं . होता। और आध्यात्मिक वासना का भी कोई मतलब नहीं होता। वासना ही संसार है। तो जब तक आप वासना में हैं, तब तक आप संसार में हैं। वह वासना मोक्ष को पाने की हो, तो भी आप सांसारिक हैं। और जब आप वासना में नहीं हैं, तब चाहे आप संसार में ही हों, आप मोक्ष में हैं। इसे ऐसा समझें कि वासना का संबंध विषयों से, आब्जेक्ट्स से नहीं है। वासना का संबंध, क्या आप मांगते हैं, इससे नहीं है; मांगते हैं, इससे है। आप क्या मांगते हैं, यह असंगत है, इररेलेवेंट है। धन मांगते हैं, धर्म मांगते हैं; यश मांगते हैं कि मोक्ष मांगते हैं; मांगते हैं जब तक, तब तक आप संसार में हैं। जहां आप नहीं मांगते, आप मोक्ष में हैं। इसलिए मोक्ष मांगा नहीं जा सकता। जो नहीं मांगता है, वह मोक्ष को पा जाता है। मोक्ष की वासना नहीं हो सकती। जिसकी वासना छूट जाती है, वह मुक्त हो जाता है। तो मोक्ष किसी वासना का परिणाम नहीं है। किसी दौड़ की अंतिम मंजिल नहीं है मोक्ष। किसी भी दौड़ में रुक जाने का नाम मोक्ष है। किसी भी दौड़ में कोई ठहर जाए, वह मुक्त हो गया। तो मोक्ष किसी यात्रा का गंतव्य नहीं है, अंत नहीं है। जहां रास्ता समाप्त होता है, वह मंजिल नहीं है मोक्ष। जहां दौड़ नहीं रह जाती, वहीं मोक्ष है। तो जहां भी आप रुक जाएं, रास्ते पर ही इसी वक्त रुक जाएं, वहीं मोक्ष है। जब भी चेतना ठहर जाती है...। और वासना में चेतना कभी नहीं ठहरती। वासना का अर्थ ही है, चेतना दौड़ती रहेगी। इसलिए लाओत्से सांसारिक और आध्यात्मिक वासनाएं नहीं मानता। इसलिए आध्यात्मिक लोगों को लाओत्से से बड़ी परेशानी होती है; क्योंकि वे अपने मन में मान कर बैठे हैं कि हमने सांसारिक वासना छोड़ दी और ऊंची वासना पकड़ ली। कोई वासना ऊंची नहीं होती। कोई जहर ऊंचा नहीं होता। कोई पाप ऊंचा नहीं होता। जहर बस जहर है। वासना वासना है। हां, एक खतरा है। ऊंचा जहर तो नहीं होता, शुद्ध और अशुद्ध जहर हो सकता है। मिलावट हो, तो अशुद्ध होता है। मिलावट न हो, तो शुद्ध होता है। संसार की वासना अशुद्ध जहर है। मोक्ष की वासना शुद्ध जहर है। इससे उन मित्र को परेशानी हुई कि आप आध्यात्मिक वासना को सांसारिक वासना से बुरी कह रहे हैं! कारण है कहने का। क्योंकि संसार और वासना के साथ तो तालमेल है; संसार में वासना तो संगत है। मोक्ष के साथ वासना का कोई तालमेल ही नहीं है; बिलकुल असंगत है। तो संसार और वासना में तो एक संगीत है; क्योंकि संसार हो ही नहीं सकता वासना के बिना। लेकिन मोक्ष और वासना में तो कोई लेन-देन नहीं है। 376
SR No.002372
Book TitleTao Upnishad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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