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________________ बिलकुल स्वस्थ रहते हैं कि असली कारण इकट्ठा किया है अचे ताओ उपनिषद भाग २ करीब पहुंचने लगता है। जब सपना न देखे, नींद ले रहा हो, तब जगाना सात दिन तक। कोई असर नहीं होता, बिलकुल स्वस्थ रहता है; कोई फर्क नहीं पड़ता। तो वैज्ञानिक कहते हैं कि असली कारण, नींद की कमी से कोई परेशान नहीं होता। परेशान होता है सपने न देख पाने से। क्योंकि दिन भर में जो कचरा आपने इकट्ठा किया है अचेतन में, वह अगर न निकल पाए, इकट्ठा होता चला जाए, तो वही आपकी विक्षिप्तता बन जाएगा। सपने अकारण नहीं हैं। आपके हैं, आप ही हैं आपके सपनों में। तो अगर आप आंख बंद करते हैं और चित्र आने शुरू हो जाते हैं, तो आपका रस है उनमें, इसलिए आते हैं। रस को तोड़ दें। पहला काम रस तोड़ने का करें। रस-भंग करना पहला काम है। इस स्व उदघाटन के लिए, रस-भंग पहला काम है। चित्र आएं, देखें, रसहीन हो जाएं, निष्क्रिय हो जाएं, पैसिव हो जाएं। देखते रहें कि ठीक है। जैसे एक आदमी फिल्म देख रहा हो और अभी-अभी डाक्टर ने उसको आकर कहा हो कि तुम्हारी जांच से पता चला कि कैंसर की ही बीमारी तुम्हें है। अब भी वह फिल्म देखता रहेगा; लेकिन सब रस खो गया। अब भी चित्र की तस्वीर चलती रहेगी पर्दे पर और आंखें देखती रहेंगी; लेकिन भीतर सब खो गया। ऐसे ही जिस व्यक्ति को इन तीन । चीजों से अपना तोड़ना हो जाएगा, उसका रस खो जाएगा। पुरानी आदत से चित्र चलेंगे, लेकिन रस नहीं होगा। विरस हो जाएं चित्रों में। और जैसे ही यह विरसता बढ़ेगी, चित्र कम होते जाएंगे, बीच में गैप और अंतराल आने लगेंगे। और जब अंतराल आएगा, तब आप अचानक पाएंगे कि आपका ध्यान अपने पर पड़ रहा है, आपकी ज्योति स्वयं के ऊपर पड़ रही है, आपका दीया आपको उदघाटित कर रहा है। यह दीया वही है जिसने दूसरों को उदघाटित किया था अब तक। जब दूसरे मौजूद नहीं होते, तो दीए की ज्योति स्वयं पर पड़नी शुरू हो जाती है। __ कान बंद करके बैठ जाएं, आवाजें बाहर की ही सुनाई पड़ेंगी, मित्रों से हुई बातचीत के टुकड़े कानों में तैर जाएंगे, कोई गीत की कड़ी गूंज उठेगी। विरस होकर सुनते रहें, रस न लें। कड़ी कान में गूंजे, लेकिन आपके भीतर अनुगूंज न पैदा हो, आप उसे गुनगुनाने न लगें। कान में ही गूंजे, आप न गुनगुनाएं, आप बेरस होकर सुनते रहें। थोड़ी देर में कान शांत हो जाएंगे, थोड़े दिन में कान शांत हो जाएंगे। जिस दिन कान बिलकुल शांत होंगे, बाहर की कोई आवाज न होगी, उस दिन भीतर का सन्नाटा पहली दफा कानों में सुनाई पड़ने लगेगा। प्रत्येक इंद्रिय को भीतर की तरफ मोड़ा जा सकता है। सुगंध! भीतर की भी एक सुगंध है, उसका हमें कोई पता नहीं। शायद वही असली सुगंध है। लेकिन बाहर की सुगंधे हमारे नासापुटों को भर देती हैं। फिर हमें याद ही नहीं रहता कि कोई आत्मा की भी सुगंध है, कोई सुवास भीतर की भी है। सारी इंद्रियों का अनुभव भीतर हो सकता है। क्योंकि-इंद्रियों को ठीक से समझ लें-इंद्रियां दोहरे रास्ते हैं, डबल-वे ट्रैफिक हैं। इंद्रिय आपसे भी जुड़ी है भीतर और बाहर संसार से भी जुड़ी है। इसीलिए तो संसार की खबर आप तक लाती है। आपसे न जुड़ी हो, तो संसार की खबर आप तक नहीं आ सकती। लेकिन हम इंद्रियों का उपयोग वन-वे ट्रैफिक की तरह कर रहे हैं। हम सिर्फ संसार की ही खबरें ले रहे हैं। हमने उनसे भीतर की कभी कोई खबर नहीं ली। लाओत्से कहता है, सहज स्व का उदघाटन करें। - जैसे प्रकृति का उदघाटन हुआ है, जैसे बाहर आकाश दिखाई पड़ा है, चांद-तारे दिखाई पड़े हैं, फूल खिले हैं, बाहर चेहरे दिखाई पड़े हैं, यह विराट विस्तार बाहर का अनुभव हुआ है। ठीक ऐसा ही विरुट गहन विस्तार भीतर भी है। ध्यान को रूपांतरित करना पड़े। यह जो बाहर गया ध्यान है, इसे भीतर बुला लेना पड़े-अपने घर की ओर वापसी। उस वापसी यात्रा का जो पड़ाव है आखिरी, वहां स्वयं का बोध, स्वयं का ज्ञान, उदघाटन-जो भी हम कहना चाहें, कहें। 360
SR No.002372
Book TitleTao Upnishad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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