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________________ ताओ उपनिषद भाग २ रात लाखों पशु-पक्षी खाना नहीं खाते। अगर वे सब मोक्ष में जा रहे हैं, तो आप मत जाना। यह कोई गुण नहीं है। नहीं खाते, बड़ा अच्छा है; स्वास्थ्यपूर्ण भी है। और आपके हित में है; आपके शरीर के हित में है। आत्मा का कुछ बहुत लेना-देना नहीं है। झूठा आदमी जो अहिंसक है, ऊपर वह झूठी अहिंसा पैदा कर लेता है। वह कहता है, हरी सब्जी नहीं खाएंगे। अब कितने होशियार लोग हैं! और कितने बेईमान! इन्हीं को लाओत्से कहता है, छोड़ो बेईमानी, छोड़ो होशियारी! एक घर में मैं रुका था। तो जैनों के पर्युषण के दिन थे। तो हरी सब्जी नहीं खाएंगे, लेकिन केला खा रहे थे। मैंने कहा, यह क्या हुआ? उन्होंने कहा, यह हरा नहीं है, रंग हरा नहीं है। हरी सब्जी से मतलब रंग हरा! यह होशियारी है, कानूनी होशियारी है। हरे का मतलब होना चाहिए गीला। सूखा खा सकते हैं। लेकिन हरे का मतलब ले लिया है कि रंग हरा न हो बस, फिर कोई बात नहीं है। तो केले का रंग हरा नहीं है; फिर मजे से खा सकते हैं। कुछ लोग हैं, जो सोचते हैं कि सूखा ही खाना चाहिए। लेकिन महावीर का खयाल ऐसा था कि जो चीज वृक्ष से अपने आप पक कर गिर पड़ी हो और सूख गई हो; तोड़ी न गई हो। लेकिन सूखा ही खाना चाहिए व्रतों के दिनों में, तो लाकर लोग चीजों को सुखा कर पहले से रख लेते हैं। आप ही सुखा रहे हैं। अभी सुखाते हैं कि आठ दिन । बाद सुखा कर खाते हैं, या गीला खाते हैं, क्या फर्क पड़ रहा है? आठ दिन पहले सुखा कर रख लिया है, फिर बाद में खा रहे हैं, क्योंकि सूखी चीज खा रहे हैं। एक दिन ऐसा हुआ कि बुद्ध का एक भिक्षु भिक्षा मांगने गया। और एक चील आकाश में उड़ती थी और उसके मुंह में मांस का टुकड़ा था और वह भिक्षा के पात्र में गिर गया। भिक्षु बड़ा मुश्किल में पड़ा। क्योंकि बुद्ध ने कहा था, भिक्षा के पात्र में जो भी मिल जाए, उसे स्वीकार कर लेना चाहिए। अब यह भिक्षा के पात्र में मांस मिल गया! ___ वह आया लौट कर। उसने बुद्ध से कहा कि अब मैं क्या करूं? आपने कहा है कि भिक्षा के पात्र में जो भी आ जाए! एक चील एक मांस का टुकड़ा मेरे भिक्षा के पात्र में गिरा गई है। ऐसा बहुत कम उल्लेख है कि बुद्ध ने किसी का उत्तर देते वक्त सोचा हो। लेकिन इस भिक्षु को उत्तर देते वक्त, कहते हैं, सोचा। आंख बंद कर ली; और फिर कहा कि ठीक है, जो भी भिक्षा-पात्र में आ गया है, उसे तू ले ले। आनंद ने कहा कि आप यह क्या कह रहे हैं? मांस! __ तो बुद्ध ने कहा, चीलें रोज-रोज भिक्षा-पात्रों में मांस नहीं गिराएंगी। संयोग की बात है। अब शायद दुबारा ऐसा फिर कभी नहीं होगा इतिहास में भी। लेकिन इस संयोग की बात के लिए अगर मैं यह कहूं कि नहीं, भिक्षु तुम स्वयं चुन लेना कि क्या लेना और क्या नहीं लेना, तो लोग सिर्फ मिठाइयां ही लेंगे और बाकी चीजें छोड़ देंगे। लोग होशियार हैं आनंद, लोग चालाक हैं। चीलें इतनी चालाक नहीं हैं कि रोज-रोज...। तो मैंने यही सोचा कि चीलें ज्यादा चालाक हैं कि आदमी ज्यादा चालाक हैं; उस हिसाब से नियम बनाना चाहिए। लेकिन बुद्ध को पता नहीं कि आप कोई भी नियम बनाओ, आदमी की चालाकी में फर्क नहीं पड़ता। और आज चीन और जापान, सब बौद्ध मुल्क मांसाहारी हैं। और हर बौद्ध होटल के ऊपर लिखा रहता है कि यहां मारे गए जानवर का मांस नहीं मिलता, अपने आप मर गए जानवर का मांस मिलता है। क्योंकि मारने में हिंसा है; अब एक जानवर अपने आप ही मर गया, इसमें किसी ने हिंसा तो की नहीं। अब इसका मांस खा लेने में क्या हर्ज है? इतने जानवर अपने आप मरते भी नहीं। लेकिन वह मारने का काम कोई और करते हैं। होटल में तो मांस ही आता है मरा-मराया। होटल के मैनेजर को इससे कुछ लेना-देना नहीं है। वह खुद भी बौद्ध है, तख्ती लगी हुई है कि मरे हुए जानवरों का ही मांस मिलता है। 346
SR No.002372
Book TitleTao Upnishad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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