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________________ ताओ उपनिषद भाग २ बुद्ध और लाओत्से ने चेष्टा की। चेष्टा बहुत महत्वपूर्ण है। लेकिन चेष्टा सफल नहीं हो सकती। और आदमी किसी भी तरह से धोखे का यंत्र पैदा कर ले सकता है। आत्मा जिन्होंने मानी, जिन्होंने घोषणा की परमात्मा होने की, उन्होंने तो धोखा दिया ही; बुद्ध के बाद बुद्ध के भिक्षुओं ने भी वही किया। उन्होंने कोई घोषणा नहीं की; लेकिन तब भी धोखा दिया। धोखा कहीं से भी दिया जा सकता है। धोखे से बचने का कोई उपाय नहीं है। फिर इसका अर्थ हुआ कि यह निर्भर करेगा व्यक्ति के अपने रुझान पर कि वह कैसे प्रकट करे। लाओत्से और बुद्ध की रुझान, उनकी पसंदगी नकार की है, नेति-नेति की है। किसी बात को कहना हो, तो वे कहते हैं, वह जो नहीं है, उससे ही कहो। अगर उनका बस चले, तो वे चाहते हैं कि मौन रह कर ही कहो। लेकिन यह निर्भर करेगा। मीरा मौन नहीं रह सकती; मंसूर भी मौन नहीं रह सकता। यह मंसूर और मीरा के व्यक्तित्व में फर्क है। चैतन्य मौन नहीं रह सकते; नाचेंगे, गाएंगे और घोषणा करेंगे। यह घोषणा की नहीं जा रही है, हो रही है। इसे थोड़ा ठीक से समझ लें। एक आदमी चुप बैठ सकता है। बुद्ध को जब ज्ञान हुआ, तो बुद्ध सात दिन तक बोले नहीं। बुद्ध को जब ज्ञान हुआ, तो वे सात दिन तक चुप रह गए। और बड़ी मीठी कथा है कि देवताओं ने बुद्ध के चरणों पर सिर रखा और प्रार्थना की कि करोड़ों-कसेड़ों वर्षों में कभी कोई व्यक्ति इस परम अवस्था को उपलब्ध होता है; जन्मों-जन्मों से न मालूम कितने लोग प्रतीक्षा करते हैं कि कोई बुद्ध हो और बोले; आप बोलें, चुप न रह जाएं। आप चुप रह जाएंगे, तो जो सुनने को आतुर हैं, उनका क्या होगा? जो प्यासे हैं, चातक की तरह जिन्होंने प्रतीक्षा की है जन्मों-जन्मों तक, वे प्यासे ही रह जाएंगे। लेकिन बुद्ध का तब भी मन न हुआ। बुद्ध ने कहा कि मेरी समझ में नहीं आता कि क्या बोलूं? क्योंकि जो भी मैं कहूंगा, वह गलत होगा। शब्द ही गलत है; मौन ही सही है। तो जो मौन से समझ सकते हों, वे समझ लें। लेकिन अगर मौन से ही लोग समझते हों, तो आकाश मौन है। अगर मौन से ही लोग समझते हों, तो बुद्ध के लिए रुकने की क्या जरूरत? चांद-तारे मौन हैं। अगर मौन से ही लोग समझते हों, तो पहाड़, पत्थर, झीलें, फूल, सब मौन हैं। चारों तरफ मौन का विराट साम्राज्य है। मौन से कहां कौन समझता है! बुद्ध का मौन भी इस मौन को गहरा तो न कर पाएगा। देवताओं ने कहा कि नहीं, आप बोलें, चाहे बोलने में गलती हो और चाहे लोग न समझ पाएं। अगर सौ सुनें और एक भी समझ जाए, तो भी काफी है, तो भी बहुत है। बुद्ध ने कहा, कुछ लोग हैं, जो मेरे बोलने से गलत न समझेंगे, ठीक समझेंगे। जो मेरे बोलने को ठीक समझ सकते हैं, वे मेरे बिना बोले भी समझ लेंगे। और कुछ लोग हैं, जो मेरे बोलने से भी गलत समझेंगे। जो मेरे बोलने से भी गलत समझने वाले हैं, उनके लिए तो बोलने का कोई प्रयोजन नहीं है। तुम मुझे चुप रह जाने दो।। लेकिन देवताओं ने भी एक तर्क उपस्थित किया। और प्रीतिकर तर्क था। और उन्होंने कहा, आपकी बात ठीक है। अगर जगत में दो ही तरह के लोग होते, तो हम मान जाते। तीसरे तरह के भी लोग हैं, जो दोनों के बीच में हैं। जो आप न बोलेंगे, तो न समझ पाएंगे; आप बोलेंगे, तो समझ जाएंगे। किनारे पर खड़े हैं। आप न बोलेंगे, तो न समझ पाएंगे; आप बोलेंगे, तो समझ जाएंगे। जरा सा धक्का, और उनकी छलांग लग सकती है। उनके लिए बोलें। स्वभावतः जो आदमी मौन का आग्रह कर रहा था, जब बोलेगा, तो उसका बोलना नकारात्मक होगा। उससे आप पूछे कि ईश्वर क्या है? तो वह बताएगा, ईश्वर यह नहीं है, ईश्वर यह नहीं है, ईश्वर यह नहीं है। मौन का जिसका आग्रह था, निषेध उसकी पसंदगी होगी। लेकिन चैतन्य हैं, या मीरा है, इनका ज्ञान नृत्य बन गया, अभिव्यक्ति बन गया। इनका ज्ञान गीत बन गया। इनके ज्ञान और इनकी अभिव्यक्ति में क्षण भर का फासला न पड़ा। ये काफी मुखर हैं। मुंह से ही नहीं, शरीर से भी। 248
SR No.002372
Book TitleTao Upnishad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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