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________________ ताओ उपनिषद भाग २ 12 तो जीवन की जो साधारण व्यवस्था है, उसे कहीं से तोड़ देने और कहीं से उसमें जाग जाने की जरूरत है। लाओत्से कहता है, सफलता के क्षण में ओझल हो जाओ। इससे दूसरी बात भी हम समझ सकते हैं कि जब असफलता का क्षण हो, तब ओझल मत होना। जब हारे रहो, जब पराजित हो जाओ, तब राजधानी की सड़कों को मत छोड़ना । और जब जीत जाओ, तब हट जाना कि कोई देखने को भी न हो। विजय के क्षण में जो हट सकता है, उसका अहंकार तत्क्षण तिरोहित हो जाता है, एवोपरेट हो जाता है। पराजय के क्षण में जो टिक सकता है, उसका भी अहंकार तिरोहित हो जाता है। इससे विपरीत दो स्थितियां हैं: पराजय के क्षण में छिप जाओ और विजय के क्षण में प्रकट हो जाओ, तो अहंकार मजबूत होता है । अहंकार के कारण ही हम छिपना चाहते हैं- हारी हुई हालत में। और अहंकार के कारण ही हम प्रकट होना चाहते हैं— जीती हुई हालत में । इस अहंकार की व्यवस्था और इस अहंकार के निर्माण होने के ढंग को जो ठीक से समझ ले, वह अहंकार के साथ भी खेल खेल सकता है। अभी तो अहंकार हमारे साथ खेल खेलता है। और जो व्यक्ति अहंकार के साथ खेल खेलने को राजी हो जाए, समर्थ हो जाए, वह आदमी अहंकार से मुक्त हो जाता है। गुरजिएफ न्यूयार्क में था । और बड़ी प्रगाढ़ सफलता गुरजिएफ के विचारों को मिल रही थी । उसके एक शिष्य लिखा है कि हम गुरजिएफ को कभी न समझ पाए कि वह आदमी कैसा था। क्योंकि जब कोई चीज सफल होने के पूरे करीब पहुंच जाए, तभी वह कुछ ऐसा करता था कि सब चीजें असफल हो जातीं। ठीक ऐन मौके पर वह कभी नहीं चूकता था चीजों को बिगाड़ने में। और बनाने के लिए इतना श्रम करता था जिसका कोई हिसाब नहीं । उसने बहुत से साधना - आश्रम निर्मित किए । एक साधना - आश्रम पेरिस के पास निर्मित किया। वर्षों मेहनत की, अथक श्रम उठाया, सैकड़ों लोगों को साधना के लिए तैयार किया । और फिर एक दिन सब विसर्जित कर दिया। जिन्होंने इतनी मेहनत उठाई थी, उन्होंने कहा, तुम पागल मालूम पड़ते हो, क्योंकि अब तो मौका आया कि अब कुछ हो सकता है। इसी दिन के लिए तो हमने वर्षों तक मेहनत की थी। तो गुरजिएफ ने कहा कि हम भी इसी दिन के लिए वर्षों तक मेहनत किए थे। अब हम विसर्जित करेंगे — इसी विसर्जन के लिए। न्यूयार्क में फिर दुबारा एक बड़ी व्यवस्था और एक बड़ी संस्था निर्मित होने के करीब पहुंचने को आई। वर्षों मेहनत की शिष्यों ने और गुरजिएफ ने । और एक दिन सारी चीज उखाड़ कर वह चलता बना। निकटतम साथी उसे छोड़ते चले गए । क्योंकि धीरे-धीरे लोगों को अनुभव हुआ कि यह आदमी निपट पागल है। सफलता का क्षण जब करीब होता है, हाथ के करीब होता है कि फल हाथ में आ जाए, तब यह आदमी पीठ मोड़ लेता है । और जब फल आकाश की तरह दूर होता है, तब यह इतना श्रम करता है जिसका कोई हिसाब नहीं । निश्चित ही, यह पागल आदमी का लक्षण है। लेकिन लाओत्से इस पागल आदमी को ज्ञानी कहता है। लाओत्से कहता है कि जब सफलता हाथ में आ जाए, तब तुम चुपचाप ओझल हो जाना। इसे अगर भीतर से समझें, तो जो ट्रांसफार्मेशन, जो क्रांति घटित होगी, वह खयाल में आ जाएगी। इसे कभी प्रयोग करके देखें। सफलता तो बहुत दूर की बात है, अगर रास्ते पर कोई आदमी चलता हो और उसका छाता गिर जाए, तो हम उसे उठा कर खड़े रह कर दो क्षण प्रतीक्षा करते हैं कि वह धन्यवाद दे। और अगर वह धन्यवाद न दे, तो चित्त को बड़ी निराशा और बड़ी उदासी होती है। एक धन्यवाद भी हम छोड़ कर नहीं हट सकते हैं। एक धन्यवाद भी हम ले लेना चाहते हैं। तो लाओत्से जो कह रहा है कि जब काम बिलकुल सफल हो जाए और जीवन सिद्धि के करीब पहुंच जाए और मंजिल सामने आ जाए, तब तुम पीठ मोड़ लेना और चुपचाप तिरोहित हो जाना। बड़े इंटिग्रेशन, बड़ी भीतर सघन आत्मा की जरूरत पड़ेगी। वह जो सघनता है भीतर की, उस सघनता का जो परिणाम होता है, वह बहुत
SR No.002372
Book TitleTao Upnishad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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