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________________ अक्षय व निराकार, सनातन व शुन्यता की प्रतिमूर्ति जैसे मैंने सौंदर्य के लिए कहा, वह सिर्फ इसीलिए कहा ताकि आप अस्तित्व को समझ सकें। हमने कभी अस्तित्व नहीं देखा। कभी हमने एक दरख्त देखा है, जिसका अस्तित्व है। कभी एक नदी देखी, जिसका अस्तित्व है। कभी एक आदमी देखा, जिसका अस्तित्व है। कभी एक सूरज देखा, जिसका अस्तित्व है। लेकिन अस्तित्व हमने कभी नहीं देखा। वस्तुएं देखी हैं, जो हैं। - लेकिन जो वस्तुएं हैं, वे खो जाएंगी। हम कहते हैं, टेबल है। इसे थोड़ा समझें। दर्शन के लिए गहनतम प्रश्नों में से एक है। और मनुष्य की प्रतिभाओं में जो श्रेष्ठतम शिखर थे, उन्होंने इसके साथ बड़ा ऊहापोह किया है। एक टेबल है; हम कहते हैं, है। एक आदमी है; हम कहते हैं, है। एक मकान है; हम कहते हैं, है। जैसे मैंने कहाः फूल सुंदर है, तारा सुंदर है, चेहरा सुंदर है; टेबल है, मकान है, आदमी है, सूरज है। यह 'है', अस्तित्व क्या है? क्योंकि टेबल में भी है, सूरज में भी है, आदमी में भी है। हमने आदमी देखा, सूरज देखा, टेबल देखी; लेकिन वह जो है-पन है, इज़नेस, वह जो अस्तित्व है, वह हमने कभी नहीं देखा। समझें, टेबल को हमने नष्ट कर दिया। हमने कहा था, टेबल है। दो चीजें थीं: टेबल थी और होना था। हमने टेबल को नष्ट कर दिया। क्या हमने होने को भी नष्ट कर दिया? फूल था। कहते थे, है; अब कहते हैं, नहीं है। फूल को हमने मिटा दिया। लेकिन फूल के भीतर जो होना था, अस्तित्व था, क्या उसे भी हमने मिटा दिया? अस्तित्व को हमने कभी देखा नहीं। हमने सिर्फ चीजें देखी हैं। एक आदमी है, मर गया। तो आदमी है, इसमें दो चीजें थीं। आदमी था : हड्डी, मांस-मज्जा थी, शरीर था, मन था। और होना था, अस्तित्व था। हड्डी टूट गई, शरीर गल गया; मिट्टी हो गई। लेकिन है', वह जो होना था, क्या वह खो गया? क्या वह होना भी मिट गया? जब हम एक फूल को मिटा देते हैं, तो ध्यान रखना, हम केवल फूल को मिटाते हैं, सौंदर्य को नहीं। जिस सौंदर्य को हमने देखा नहीं, उसे हम मिटा कैसे सकेंगे? जिस सौंदर्य को हम कभी पकड़ नहीं पाए, उसे हम मिटा कैसे सकेंगे? जिस सौंदर्य को हमने कभी छुआ भी नहीं, उसकी हम हत्या कैसे कर सकेंगे? जो सौंदर्य हमारी इंद्रिय की किसी भी पकड़ में कभी नहीं आया, उसे हम इंद्रियों के द्वारा समाप्त कैसे कर सकेंगे? हम फूल को मिटा सकते हैं। हम एक आंख को फोड़ डाल सकते हैं। लेकिन उस सौंदर्य को नहीं, जो आंख से झलका था। वह आंख से अलग है। हम अस्तित्व को नहीं मिटा पाते हैं। सूरज बनते हैं, बिखर जाते हैं। सृष्टियां आती हैं, खो जाती हैं। आदमी पैदा होते हैं, कब्र बन जाती हैं। लेकिन उनके भीतर जो होना था, जो अस्तित्व था; वह सदा, वह सदा ही प्रवाहित बना रहता है। लाओत्से कहता है, न उसके प्रकट होने पर होता प्रकाश, न उसके डूबने पर होता अंधेरा। क्योंकि न वह प्रकट होता है और न वह डूबता है। जो डूबता है, जो प्रकट होता है, इससे उसे मत पहचानना। वह इससे गहरा है। सूरज के प्रकट होने पर भी जो प्रकट नहीं होता और सूरज के डूबने पर भी जो नहीं डूबता, वही है। फूल के होने पर भी जो होता नहीं और फूल के न हो जाने पर भी जो मिटता नहीं, वही है। जन्म के साथ जिसका जन्म नहीं होता और मृत्यु के साथ जिसकी मृत्यु नहीं होती, वही है। जन्मता है एक व्यक्ति, तो हम सीमा-रेखा खींच सकते हैं जन्म की। राम नाम का व्यक्ति पैदा हुआ, तो हमने सीमा खींची-इस दिन पैदा हुआ। फिर वह व्यक्ति मरा, तो हमने सीमा खींची-इस दिन मरा। यह राम नाम के व्यक्ति की सीमा है, लेकिन जीवन की नहीं। इसमें थोड़ा हम गहरे उतरें, तो शायद हमें पता चले। 'किस दिन को आप जन्म-दिन कहते हैं? इसमें झगड़े हैं। जिस दिन बच्चा पैदा होता है वह जन्म-दिन है या जिस दिन बच्चे का गर्भाधान होता है वह जन्म-दिन है? आमतौर से जिस दिन बच्चा मां के पेट से बाहर आता है, 187
SR No.002372
Book TitleTao Upnishad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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