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________________ ताओ उपनिषद भाग २ यह सूत्र थोड़ा कठिन है। इसे थोड़ा दो-तीन दिशाओं से समझना पड़े। लाओत्से किसी व्यक्तिगत आत्मा में भरोसा नहीं रखता, वह ठीक बुद्ध जैसा है। और यह मजे की बात है; इसीलिए बुद्ध के पैर हिंदुस्तान में न जम सके, लेकिन लाओत्से के चीन में जम गए। बुद्ध के पैर हिंदुस्तान में न जमे। बुद्ध ने गहरी से गहरी बात कही, जो किसी मनुष्य ने कभी कही हो। लेकिन बात इतनी गहरी हो गई कि हम किनारे पर खड़े लोगों को बिलकुल भी समझ में न आई। वह इतनी गहरी आवाज हो गई कि वह आवाज हमारे पास तक न पहुंची। और पहुंची, तो बिलकुल विकृत हो गई। और हमने जो अर्थ निकाले, वे हमारे अर्थ थे। बुद्ध ने कहा कि यह आत्मा की बातचीत भी बंद करो; क्योंकि यह खयाल भी कि मैं आत्मा हूं, मुझे अस्तित्व से तोड़ देता है और अलग कर देता है। कठिन हुआ। क्योंकि अगर आत्मा भी नहीं है, तो हमें तो लगा कि सब खो गया। बुद्ध से लोग जाकर पूछते थे कि अगर आत्मा भी नहीं है, तो फिर किसलिए शील? और किसलिए समाधि? और किसलिए साधना? और यह इतना उपाय किसलिए? अगर आत्मा है, तो समझ में आता है कि आत्मा को पाने के लिए। वही लोभ की भाषा हमारी काम करती है। आत्मा को पाने के लिए एक आदमी त्याग कर रहा है, तपश्चर्या कर रहा है, समझ में आता है। बुद्ध से लोग पूछते हैं कि आत्मा भी नहीं है, तो फिर त्याग किसलिए? तपश्चर्या किसलिए? बुद्ध से लोग पूछते हैं, अगर आत्मा भी नहीं है, तो मोक्ष किसका होगा? और अगर मुक्त भी हो गए और आत्मा ही नहीं है, तो बचेगा क्या? लोगों का पूछना भी ठीक है, क्योंकि लोग लोभ की भाषा के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं समझ सकते। बुद्ध ने कहा है, तुम्हारा होना ही तुम्हारा दुख है; तुम हो, तब तक तुम दुखी रहोगे। यह बहुत कठिन हो गया। चाह छोड़ देना भी समझ में आ सकता है। कम से कम मैं तो बचूंगा। चाह भी छोड़ दूं, मैं तो बचूंगा, चाहने वाला तो बचेगा। सब छोड़ दूं, लेकिन कम से कम मैं तो बचूंगा। और बुद्ध कहते हैं कि तुम अगर बचे, तो सब बच गया। क्योंकि तुम्हारे होने में ही सारा संसार है। तुम हो ही चाहों का एक जोड़! कभी सोचा आपने कि अगर आप अपनी सब चाहें निकाल कर अलग-अलग रख दें, तो क्या आपकी हालत वैसी न हो जाएगी, जैसे प्याज के छिलके कोई छीलता चला जाए। अपनी सब चाहें अलग रख दें, आप बचेंगे पीछे ? एक बात पक्की है कि आप जो भी अपने को समझते हैं, वह तो नहीं बचेगा। और जो बचेगा, उसका आपको कोई भी पता नहीं है। आपकी तरफ से तो शून्य ही बचेगा। आप तो खो जाएंगे। इसलिए भारत में भी बुद्ध की बात की गहराई में जड़ें नहीं पकड़ पाईं। क्योंकि जब बुद्ध ने आत्मा को ही इनकार कर दिया और कह दिया कि आत्मा भी नहीं है-तुम हो ही नहीं, यही जान लेना ज्ञान है, बुद्ध ने कहा-तो कठिन हो गया। चीन में लाओत्से के कारण ही, बुद्ध की बात जब पहुंची लाओत्से के बाद, तो चीन पकड़ पाया। क्योंकि लाओत्से ने बीज बोए थे, जिसमें लाओत्से ने कहा था ः हम इस कारण ही भयभीत हैं, इस कारण ही लोभ से भरे हैं कि हमने अहंकार को ही अपना होना समझ लिया है। यह जो मेरे भीतर मैं का भाव है, मैं हूं, यही हमारे दुख, लोभ, भय का कारण है। वस्तुतः मैं नहीं हूं; सब है। उसमें मैं भी हूं, मैं की तरह नहीं। जैसे एक लहर सागर में है, उस तरह। लहर है सागर में; अलग नहीं, भिन्न नहीं। फिर भी भिन्न दिखाई पड़ती है, फिर भी भिन्न है। लहर जुड़ी है सागर से भीतर, फिर भी बाहर से आकृति अलग मालूम पड़ती है। यह जानते हुए भी कि लहर सागर है, फिर भी लहर को हम अलग ही जानते हैं। मैं लहर हूं। लेकिन अगर कोई लहर समझ ले कि मैं अलग हूं, तो कष्टों की यात्रा शुरू हो गई। अगर लहर समझ ले कि मैं अलग हूं, तो फिर लहर का जन्म महत्वपूर्ण हो गया, फिर लहर की मृत्यु महत्वपूर्ण हो गई। और अब लहर के सिवाय कौन बचाएगा उसे मृत्यु के भय से? 158
SR No.002372
Book TitleTao Upnishad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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