SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 140
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ताओ उपनिषद भाग २ कि वह नाम यह रहा। लेकिन जरा सा, इंच भर का फासला आपके और उसके बीच में है। और उस बीच में आप इतने तन गए हैं कि जगह नहीं है। आपसे कहा, खुरपी लेकर बगीचे में लग जाओ। आप खुरपी में उलझ गए, बगीचे में उलझ गए। वह तनाव हट गया, वह जो बीच में ग्रंथि बन गई थी, वह हट गई। नाम ऊपर आ गया। अब सवाल यह है कि खुरपी और मिट्टी खोदने से इस नाम के आने का कोई भी संबंध है? कोई भी संबंध नहीं है, कोई भी संबंध नहीं है। फिर भी संबंध है। और संबंध नकारात्मक है। मिट्टी खोदने ने सिर्फ आपके ध्यान को दूसरी तरफ हटा दिया। बस, आप भीतर शिथिल हो गए, शांत हो गए, विश्राम मिल गया। उस विश्राम में बबलिंग, भीतर का बबूला ऊपर आ गया। और नाम आपको याद आ गया। इसलिए अक्सर ऐसा हो जाता है कि आपको सब पता रहता है जब तक आपसे कोई पूछे न। पूछा किसी ने कि सब गड़बड़ हो जाता है। इंटरव्यू के पहले, बाहर कतार में खड़ा हुआ वह जो आदमी इंटरव्यू देने आया है, उसको सब पता होता है। दरवाजे के भीतर पैर रखा कि सब खो जाता है। लौट कर जब वह दरवाजे के बाहर फिर पैर रखता है, वह कहता है, हद हो गई! यह इतने से दरवाजे में क्या हो जाता है? यह आदमी वही का वही है। इसकी बुद्धि को हो क्या जाता है? असल में, बुद्धि इतनी तनाव से भर जाती है कि काम करने में असमर्थ हो जाती है, लोच खो जाती है, फ्लेक्सिबिलिटी खो जाती है, सोचने की क्षमता खो जाती है। बस अटक जाता है। वह जो अटकाव है, वह बाहरी नहीं है, भीतर की व्यवस्था का अटकाव है। इस व्यवस्था को तोड़ने के उपाय हैं। सब साधनाएं इस व्यवस्था को तोड़ने के उपाय हैं। झेन फकीर अपने साधकों से कहते रहे हैं, जब भी कोई साधक आएगा, तो झेन फकीर उससे कहते हैं कि तू ब्रह्म और आत्मा की बात मत कर। कुछ दिन हम तुझसे जो कहते हैं, वह कर। लकड़ी फाड़, पानी भर कर ला, गड्ढा खोद, खाना बना, गाय का दूध दुह, बगीचे की सम्हाल कर, खेती-बाड़ी कर। ब्रह्मज्ञान कुछ दिन बंद! और कई बार ऐसा होता है कि साल भर वह आदमी सिर्फ लकड़ी फाड़ता रहता है, पानी ढोता रहता है, जानवर चराने चला जाता. है-साल भर! वह था किसी यूनिवर्सिटी का प्रोफेसर। उसने कभी सोचा भी नहीं था कि लकड़ी काटनी पड़ेगी और घास छीलना पड़ेगा। लेकिन साल भर वह यह करता रहता है। साल भर में वह जो प्रोफेसरपन था, वह जो पागलपन था, वह छिटक जाता है। लकड़ी काटते में अब क्या करेगा? प्रोफेसर हो भी कैसे सकता है आदमी लकड़ी काटता रहे! कोई जरूरत भी नहीं है; कोई इसमें कोई बुद्धिमानी की, कोई डिग्री की, कोई ज्ञान की कोई भी जरूरत नहीं है। लकड़ी ही काट रहा है। आरा चलता रहता है, लकड़ी भी कटती रहती है, प्रोफेसर भी कटता जाता है। लकड़ी भी गिरती जाती है, प्रोफेसर भी गिर जाता है। साल भर बाद वह निपट आदमी हो जाता है, सरल आदमी। उसका गुरु उससे कहता है, अब तू पूछ! अब तू सुन सकेगा, समझ सकेगा; क्योंकि अब तू खुला है। अब तू एक खुले आकाश की भांति हो गया है। जब तू आया था, तू एक बंद घर था, जिसमें कोई द्वार-दरवाजे नहीं थे। तो सारी साधना का उपाय, लाओत्से की नकारात्मक साधना का उपाय इतना ही है कि हम किस भांति उस अवस्था को पैदा कर लें, जिसमें हमारे भीतर जो ब्लाकिंग, जो जगह-जगह अटकाव खड़े हो गए हैं, वे टूट जाएं, वे बिखर जाएं-बस। समझ लें कि नदी की एक धार है और बर्फ जम गई है, और अब धार नहीं बहती। क्या करें? सुबह की थोड़ी प्रतीक्षा करनी पड़े, सूरज निकले, नई परिस्थिति हो, सूरज की धूप पड़े-धार पिघल जाए, फिर बहने लगे। हम भी बस फ्रोजन, कहीं-कहीं धार बिलकुल अटक गई है, रुक गई है। तो परिस्थिति बदलनी पड़े कि पिघल जाए धार और बह जाए! इसलिए परिस्थिति का परिवर्तन कभी बड़े अदभुत परिणाम लाता है, अदभुत परिणाम लाता है। 130|
SR No.002372
Book TitleTao Upnishad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy