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________________ हैं। माँ सरस्वती की कृपा से यह सब संभव हुआ है । कहता हूँ कि उसीने ये कथाएं लिखाई हैं। हमेशां एक माला करते हुए उसकी कृपा मांगता हूं और उसकी कृपा होगी तो शायद दूसरी ज्ञान कथाएं भी लिखी जा सकेगी। एक बात का अफसोस है। कई प्रसिद्ध कथाएँ इसमें नहीं है। यह दृष्टि में था कि हरेक कथा संक्षेप में लिखनी। दो या तीन पृष्ठ में एक कथा पूरी करनी । अर्थात् जिन कथाओं में २० या २५ पृष्ठ चाहिये वे इसमें समाविष्ट नहीं हैं। जिनमें मुख्यतः मयणां सुंदरी, चंदराजा, वस्तुपाल - तेजपाल, विमलशाह, श्रीचंदचरित्र, अंबड चरित्र वगैरह नहीं लिख सका । २४ अरिहंत भगवंत के चरित्र भी - नहीं लिखे । श्री आदिश्वर भगवान, महावीर के २७ भावों में से मरीची- नयसार एवं श्री नंदनमुनि के चरित्र लिये हैं । ऐसे एक एक चरित्र के लिये एक एक पृथक पुस्तक लिखी जा सके इतनी सामग्री अपने भंडार में है । जिज्ञासु पढेंगे तो भावविभोर हो उठेंगे। यह पुस्तक छपने से पूर्व धार्मिक दृष्टि से कोई लेखन में भूल तो नहीं हो रही है यह सुधारने के लिये परमपूज्य आचार्यदेव श्रीमद् विजयभुवनभानु सूरीश्वरजी चरणों में विनती की। उन्होंने यह काम श्री जयसुन्दर विजयजी को सौंपा। उन्होंने बहुत परिश्रमपूर्वक कई भूलों को सुधार कर मेरे ऊपर बहुत उपकार किया है। उनका मैं अत्यंत आभारी हूँ। उनका आभार व्यक्त करने के लिये मेरा शब्दभंडार छोटा पडता है। मित्र श्री चीनुभाई गी. शाह (स्वस्थ - मानव ) ने इन कथाओं के व्याकरणदोषों को सुधारकर मेरा बहुत सारा बोझ हल्का कर दिया है। उनका मैं खास आभारी हूँ। इसके उपरांत श्री जयंतीभाई ( दर्शन प्रिन्टर्स) ने बहुत ध्यान देकर इस पुस्तक को जल्दी से छापकर तैयार कर दिया। इसके लिये उनका भी मैं आभार मानता हूँ। संक्षेप में इस लेखन में मेरा कुछ भी नहीं है। कारण कि ज्ञान के भंडारों में से ही कथाओं के लिये उपयोगी सामग्री ठूंसकर थोडा स्वाद पाठकों को कराया है। अंत में वीतराग की आज्ञा विरुद्ध कुछ भी लिखने में आ गया हो तो त्रिविधे मिच्छामि दुक्कडं । ये चरित्र लिखने में कोई भी क्षति - त्रुटि रह गई हो तो पाठक उनसे अवगत करावें ताकि दूसरी आवृत्ति में वे सुधारी जा सकें । पंचशील एपार्टमेन्ट तीसरा क्रोस, गांधीनगर, बैंगलोर ५६०००९ टे. नं. २२०३६११, २२०३६२२ 6 अज्ञानी वरजीवनदास शाह
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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