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________________ अंजना को बालक सहित अपने घर छोड़कर अपने किसी कार्यवश अन्य स्थानक पर चल दिया। पवनंजय वरुण विद्याधर की साधना करके घर लौटा। मातापिता को प्रणाम करके अपनी पत्नी के आवास में गया, वहाँ अपनी स्त्री को देखा नहीं। तत्काल मातापिता को पूछा तब उन्होंने कलंक लगने से निकालने सम्बन्धित कथा बतायी। यह सुनकर स्पष्टीकरण करते हुए उसने बताया कि रात्रि को वह स्वयं आया था और सर्व हकीकत बतायी। अंजना सती को दुःखी करके अत्यंत तेजी से गैरजिम्मेदारीपूर्वक कदम उठाया है। पवनंजय विरह व्याकुल होकर मरने के लिये चंदन की चिता रचकर मरने के लिये तैयार हुआ। उस समय उसके मित्र ऋषभदत्त ने कहा, 'सखे ! यदि मैं अंजना को ढूंढ कर तीन दिन के भीतर न ला दूं तो योग्य लगे वैसा करना' इस प्रकार कहकर उसका निवारण करके ऋषभदत्त विमान में बैठकर आकाश मार्ग से परिभ्रमण करता हुआ तीसरे दिन सूर्यपुर आ पहुँचा । वहाँ उपवन में बालकों व स्त्रियों के बीच होती गोष्ठी उसने सुनी। उस वक्त किसी बालक ने कहा कि, 'मित्रों! यहाँ अंजना नामक कोई सुंदरी पुत्र सहित आई है । वह हमारे राजा सूर्यकेतु की सभा में रोजाना आती हैं। ऐसे शब्द आकस्मिक रूप से सुनकर ऋषभदत्त ने बड़ा हर्ष पाया और तत्काल जाकर उनसे मिला।अंजना उसको देखकर लज्जा से नम्र मुख करके अपने मामा के पीछे खड़ी रही। ऋषभदेव से पति के दिग्विजय और उसकी विरहव्याकुल की बात सुनकर वहाँ जाने के लिए उत्सुक बनी। तत्पश्चात उसने मामा की आज्ञा ली। मामा ने भी अंजना को पुत्र सहित ऋषभदत्त को सौंप दी।ऋषभदत्त उन्हें लेकर बड़े वेग से पवनंजय के नगर में आया। उनके आने की खबर सुनकर पवनंजय ने बड़ा हर्ष पाया और बड़ा उत्सव करके अपने स्त्री, पुत्र को नगर प्रवेश कराया। सर्व नगरजनों ने भी आनन्द पाया। पवनंजय और अंजना दोनों में प्रतिदिन प्रीति में वृद्धि होने लगी। पुत्र का नाम उन्होंने हनुमान रखा। वह अतुलित बलवान था। एक बार बीसवें तीर्थंकर श्री मुनि सुव्रत स्वामी के तीर्थ के कोई मुनि वहाँ पधारे। उनकी देशना सुनकर पवनंजय और अंजना ने वैराग्य पाकर दीक्षा ली। बालक हनुमान बड़ा होकर वीर हनुमान बना, और श्री रामचन्द्र की सेना का अध्यक्ष बना। ____ पवनंजय मुनि तथा सती अंजना साध्वी निरतिसार व्रत पालन करके स्वर्ग गये। - जिन शासन के चमकते हीरे • १८२
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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