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________________ (दीक्षा) छोड़कर कहीं चले गये हैं। यह कुठाराघात माताजी सहन न कर सकी। अरणिक को ढूंढने के लिए जगह जगह भटकने लगी। मार्ग में पुकार उठती : 'मेरा अरणिक कहाँ गया?''ओ अरणिक! तूं कहाँ है? अरे अरणिक! तुझे दीक्षा पर्याय से किसने छीना? कहाँ है? कहाँ है?' वृद्ध साध्वी पुकार रही है और साध्वीओ पागल साध्वी समझकर लोगों की टोली उसके पीछे हुल्ला-गुल्ला मचाती दौड़ रही है। ____अरणिक एक दिन यह तमाशा झरोखे से देखते हैं। माता की चीखपुकार सुनकर मन पिघलता है। मेरी माताजी की यह दशा? मेरे लिए? नीचे उतरकर माँ के चरणों में गिरते हैं और माता बिनति करती है : 'तूने यह क्या किया? मेरी कोख लजाई? दीक्षा छोड दी? किसने तुझे ललचाया?' अरणिक कहते है, 'माताजी! दुष्कर... दुष्कर... मैं संयम पालन नहीं कर सकता।' - माताजी खूब समझाती हैं कि संयम के बिना इस भव भ्रमणा में कोई भी छुड़ा सके ऐसा नहीं है। ____ अरणिक एक शर्त पर पुनः संयम ग्रहण करने के लिए तैयार होते हैं, 'संयम लेकर तुरंत ही अनशन करके प्राणत्याग करूंगा।' यह शर्त माँ मान्य रखती है, कुछ भी हो, तूं प्राण त्याग करेगा वह मुझे स्वीकार है, लेकिन इस प्रकार संसार भोगकर भवोभव तेरी आत्मा नीच गति प्राप्त करे - वह सहन नहीं होगा। माता पुत्र की शर्त से सहमत हुई। अरणिक पुनः दीक्षा ग्रहण करके दहकती हुई शिला पर सो गये, अनशन करके शरीर को गला दिया एवं कालक्रम से केवलज्ञान प्राप्त करके मोक्ष पधारें। माता यह जानकर आनंद पाती है। एक जीव जो दुर्गति के राह पर था उसे केवलज्ञानी बनने के लिए बोध दिया, धन्य माता, धन्य मुनि अरणिक...। [सुख दुःख जो द्रव्य, काल, भाव से उदित होकर आनेवाला हो, इन्द्रादि भी बदलने के लिये शक्तिमान नहीं है जिन शासन के चमकते हीरे . ४
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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