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________________ टीका देखकर सास क्रुद्ध हो गई। बहु को न कहे जाय ऐसे शब्द कहे और पुत्र बुद्धदास को उकसाया कि 'तेरी बहु तो कुलटा है। उसने साधु के साथ काला कारनामा किया है।' सुभद्रा के सिर पर कलंक आया। उसका पति भी उसका पक्ष लेकर कुछ बोलता नहीं है। निर्दोष साधू और अपने पर लगे हुए कलंक को दूर करने के लिये सुभद्रा ने अन्नजल का त्याग किया। सती पर आये हुए अपार दुख देखकर शासन देवता ने सती को सहायता करने का तय किया। और चंपानगरी के चारों दरवाजे बंद कर दिये। इससे चंपानगरी में हाहाकार मचा। दरवाजे खोलने के लिये नगरजनों एवं राजा के सुभटों(सैनिकों)ने कड़ी मेहनत की। दरवाजे खुलते नहीं थे जिससे उसके द्वार तोड़ डालने का हुक्म राजा ने सुभटों को दिया। वे भी दरवाजे न तोड़ सकें। राजा तथा प्रजा दोनों ही चिंता में पड गये। ___कुछ समय के बाद आकाशवाणी हुई कि 'जो सती होगी वह कच्चे सूत के तार से आटा छानने की चलनी से कुए से जल निकालकर दरवाजे पर छिडकेगी तो दरवाजा खुलेगा।' ऐसी आकाशवाणी सुनकर चंपानगरी की सेठानियाँ, राजा की रानियाँ 'मैं सती, मैं सती' - ऐसा मानकर कुँए मे से जल निकालने के लिए चलनी को कच्चा सूत बांधकर बारी बारी से मेहनत करने लगी। परंतु कोई इस प्रकार जल न निकाल सका। वे सब नीचा मुँह करके लौट पड़ी। राजा ने नगरी में ढिंढोरा पिटवाया कि जो इस प्रकार से दरवाजा खोलेगा उसे बहुत धन दिया जायेगा। सुभद्रा ने यह ढिंढोरा सुना और द्वार खोलने जाने के लिए सासुमाँ की आज्ञा माँगी। सास ने क्रोध से कहा, 'बैठ... बैठ... चुपचाप । तेरे चरित्र कहाँ अनजाने हैं ! अब पूरे गाँव में हँसी उडानी है क्या? लेकिन दृढ मन से सासु का कहना अनसूना करके नवकार गिनते गिनते वह कुँए के पास गई। कच्चे सूत की डोरी से चलनी को बाँधा। कुँए में डाली और गाँव लोगों के आश्चर्य के बीच चलनी भरके जल निकाला। उस समय देवताओं ने आकाश से फूलों की वृष्टि की। सुभद्रा ने बारी बारी से एक एक द्वार पर जल छिड़का और तीन दरवाजे खोलें तथा गाँव में अन्य कोई सती हो तो आये और चौथा द्वार खोले ऐसा आह्वान दिया पर कोई आगे न बढ़ा जिन शासन के चमकते हीरे . ८८
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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