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________________ श्री उपदेश माला गाथा २६६ विद्यादाता चाण्डाल की कथा उसकी नयी शादी, नई जवानी और नया आकर्षक रूप देखकर माली अत्यंत हर्षित हुआ। मगर माली ने उससे पूछा - "सुनयने ! इस समय आधी रात को तूं अकेली यहाँ तक कैसे आ पायी?" सुंदरी ने अपने दिये हुए वचन की याद दिलाते हुए पति की आज्ञा से लेकर रास्ते की सारी घटनाएँ आद्योपांत कह सुनायी। उसे सुनकर माली ने सोचा- "धन्य है इस महिला को ! यह केवल अपने वचन का पालन करने के लिए अंधेरी रात में इतनी मुसीबतें झेलकर चोर और राक्षस को भी अपने बुद्धिकौशल से वचन देकर मेरे पास आयी है! जब इसके पति ने, चोर और राक्षस इसकी सत्यवादिता देखकर इसे छोड़ दी, तब मुझे भी इस सत्यवादी स्त्री को छोड़ देनी चाहिए। " फलत: माली ने सुंदरी से कहा‘“जाओ, मैं तुम्हें छोड़ता हूँ। आज से तुम मेरी बहन हो, मैं तुम्हारा भाई हूँ। तुम्हें कष्ट दिया उसके लिये क्षमा करो। " यों कहकर उसके चरणों में पड़कर नमस्कार करके सम्मानसहित उसे अपने घर भेजी। रास्ते में जाते हुए उसे वह राक्षस मिला। उसके पूछने पर उसने माली के साथ हुई सारी घटना बता दी। सुनकर राक्षस ने विचार किया - "जब ऐसी नवयुवती सुंदरी को सत्यवादिता के कारण माली ने सहगमन किये बिना ही छोड़ दी तो मैं ऐसी सत्यवादिनी सती का भक्षण क्यों करूँ?" अतः राक्षस ने उसे अपनी बहन बनाकर ससम्मान जाने दी। आगे जाते हुए उसे वे चोर मिले। उनसे भी जब सुंदरी ने माली और राक्षस का वृत्तांत सुनाया तो उनका भी हृदय बदल गया। उन्होंने भी उसके जेवर, वस्त्र आदि न लूटकर, उसे बहन कहकर जाने की छुट्टी दे दी। आखिर वह अपने पति के पास पहुँची और उसे उसने सारी आपबीती सुनायी। इस पर वह अत्यंत प्रसन्न हुआ और उसने अपने घर का सर्वस्व अधिकार उसे दे दिया। 2 इस कहानी को सुनाकर अभयकुमार ने सभी उपस्थित लोगों से पूछा"बताओ, इन चारों में से किसने दुष्कर कार्य किया है और क्यों?" इसे सुनकर जो स्त्री जाति पर अविश्वास रखते थे, उन्होंने कहा - "हमारी दृष्टि से उस स्त्री के पति ने ही दुष्कर कार्य किया है; क्योंकि नयी-नयी शादी थी, नयी जवान रूपवती पत्नी को सुहागरात के प्रथम संगम के दिन पर पुरुष के पास भेज दी। " परस्त्री लंपट कामी पुरुष बोल उठे - " हमारी समझ से माली ने बड़ा दुष्कर किया है। आधीरात का समय था, एकांत स्थान था और नवयौवना सुंदरी स्त्री स्वयं चलकर पास में आयी थी, फिर भी अपनी विषयेच्छा छोड़कर मन को वश में रखा; उस स्त्री के साथ सहवास न किया । " जो मांसलोलुप लोग थे, उन्होंने राक्षस के त्याग की सराहना की । आम्रफल चुराने वाला चोर भी वहीं खड़ा था। उससे न रहा गया। 331
SR No.002364
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages444
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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