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________________ रणसिंह का चरित्र श्री उपदेश माला मैं अपने माता-पिता के पास अभी जाकर कहती हूँ कि मैं कुमार के प्रभाव से पुत्री से पुत्र बना हूँ। यह देखकर भीमपुत्र व्याकुल बना। रणसिंहकुमार के पास आकर सुमित्र ने सर्व वृत्तांत कहा। पश्चात् कनकसेन राजा के पास आकर भीमपुत्र ने रात का वृत्तांत कह सुनाया। राजारानी ने सोचा-क्या हमारे जमाई भूत-प्रेत आदि से ग्रसित है अथवा पागल हो गएँ है, जो इस प्रकार असंबंध वाक्य बोल रहे है? एक ही भव में जीव स्त्रीत्व छोड़कर पुरुषत्व प्राप्त करता है, ऐसा न कभी हुआ है, न होनेवाला है और न ही यह बात कहीं सुनी है। परंतु जमाई झुठ क्यों बोलेंगे? यह किसी घूर्त का काम है, इस प्रकार विचारकर राजा ने चारों ओर कमलवती की खोज करायी, वह कहीं न मिली, इससे राजा अत्यंत शोक-मग्न बना। गुप्तचर पुरुष चारों ओर उसकी तलाश कर खेदित होते हुए वापिस लौटे। पुत्री मोह से रानी रोने लगी। उसने सेवकों से कहा-जो मेरी पुत्री को यहाँ लेकर आएगा, मैं उसकी मनोवांछा पूर्ण करूँगी। - प्रातःकाल किसी ने यह बात जानकर कनकसेन राजा से कहास्वामी! मैंने कमलवती को विवाह वेष में रणसिंह के आवास में देखा था। यह सुनकर राजा क्रोधित हुआ। भीमराजा का पुत्र और बहुत सैन्य साथ में लेकर राजा रणसिंह के साथ युद्ध करने लगा। रणसिंह ने देवता की सहायता से भीमपुत्र और राजा को जीवित पकड़ा। सुमंगला के साथ वहाँ आकर कमलवती ने पिता को प्रणाम किया और सर्व वृत्तांत निवेदन किया। कनकसेन राजा भीमपुत्र पर अत्यंत क्रोधित हुआ, किंतु कमलवती के कहने पर राजा ने उसे छोड़ दिया। रणसिंह के कुल, धैर्य आदि जानकर राजा हर्षित हुआ और महोत्सवपूर्वक उन दोनों का विवाह किया। कर मोचन में समय राजाने, अश्व आदि भेंट कीयें। रणसिंह बहुत दिनों तक उसी नगरी में रूका, पश्चात् कमलवती को साथ लेकर अपने नगर लौट आया। सोमापुरी में पुरुषोत्तम राजा की पुत्री रत्नवती ने सोचा-मुझसे विवाह करने के लिए यहाँ आनेवाले थे, किंतु मार्ग में कमलवती से विवाहकर रणसिंहकुमार वापिस अपने नगर लौट गएँ है। वे उसपर अत्यंत आसक्त बन गयें है, इसलिए मुझसे विवाह करने के लिए यहाँ नही आ रहे है। कमलवती ने उन पर कुछ कार्मण किया है। उससे कमलवती के स्नेह से पति का हृदय अतीव भर गया है। इसलिए मुझ पर स्नेह नही है। कमलवती के सिर पर कलंक देकर, पति का मन उस पर से दूर कर देती हूँ, इस प्रकार विचारकर उसने यह बात अपनी माता से कही। उसने भी कहा-तुम्हारी इच्छा अनुसार कर, इस प्रकार स्वीकृति दी। उसी नगर में गंधमुषिका नामक कार्मण-वशीकरण कर्म में कुशल एक
SR No.002364
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages444
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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