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________________ स्वजन भी अनर्थकर, संबंधी परशुराम-सुभूमचक्री की कथा श्री उपदेश माला गाथा १५१ अर्थात् - निष्पुत्र पुरुष की सद्गति नहीं होती; स्वर्ग तो उसके लिये है ही नहीं, बिलकुल नहीं। इसीलिए पुत्र का मुख देखकर मनुष्य स्वर्ग में जाता है।।१२८॥ ___'आप पुत्रहीन हैं, इसीलिए आपकी शुभगति कैसे होगी? इस दृष्टि से आपका पाप महान् है।' यमदग्नि तापस पक्षियों की बात सुनकर मन ही मन सोचने लगा- "इन पक्षियों ने जो बात कही है, वह सत्य है। इसीलिए अब इस तापस दीक्षा को छोड़कर किसी स्त्री के साथ शादी करके पुत्रोत्पत्ति करूँ, ताकि मेरी सद्गति हो।" देव तापस के मन की बात ताड़ गये। उन्होंने तापस की परीक्षा ले ली। और उनमें जो तापसभक्त देव था, उसने तापस-धर्म रूप मिथ्यात्व छोड़कर जैनधर्म स्वीकार किया एवं वह भी जैन देव बना। यमदग्नि का चित्त डांवाडोल हो चुका था। वे वहाँ से सीधे कोष्ठक नगर के राजा जितशत्रु के पास पहुँचे और उससे एक कन्या की याचना की। जितशत्रुनृप ने कहा- "मेरी अनेक कन्याएं हैं, उनमें से जो भी कन्या आपको पसंद हो, उसे ग्रहण करें।" यह सुनकर यमदग्नि अन्तःपुर में पहुँचे। वहाँ सभी कन्याएँ इस जटाधारी, दुबले-पतले, मल-मलीन, विकृतवेषी यमदग्नि को देखकर नाक-भौं सिकोड़ती हुई थू-थू करने लगीं। इस पर यमदग्नि अत्यंत खीज गये, उन्होंने सभी कन्याओं को शाप देकर कुबड़ी बना दी। अन्तःपुर में लौटते समय रास्ते में तापस ने धूल से खेलती हुई एक राजकन्या देखी। तापस ने उसे बिजोरे का फल बताया। उसे देखते ही राजकन्या ने उस फल को लेने के लिए हाथ लम्बा किया। इससे तापस समझा कि 'यह कन्या मुझे चाहती है।' उसने राजा से यह बात कही। राजा ने तापस के भय से उसे अपनी कन्या दे दी; साथ में हजार गायें और अनेक दासदासियाँ भी दी। इससे प्रसन्न होकर यमदग्नि ने अपनी तप:शक्ति से सभी कुबड़ी कन्याओं को पुन: पहले की-सी बना दी। इस तरह यमदग्नि अपनी सारी तपस्या नष्ट करके रेणुका बालिका को लेकर वन में चल दिये और वहीं एक झोंपड़ी बना कर रहने लगे। रेणुका समय पाकर युवती हुई, तब यमदग्नि ने उसके साथ शादी की। प्रथम ऋतुकाल में यमदग्नि ने रेणुका से कहा-'सुलोचने! लो, मैं तुम्हें एक चरु मंत्रित करके दे रहा हूँ, इसके सेवन से तुम्हारे एक सुंदर पुत्र होगा।' रेणुका ने प्रसन्न होकर कहा-"स्वामिन्! एक नहीं, दो चरु मंत्रित करके दीजिए; ताकि एक चरु से ब्राह्मणपुत्र हो और दूसरे से क्षत्रियपुत्र। क्षत्रिय चरु मैं हस्तिनापुर नृप अनंतवीर्य की पत्नी मेरी बहन अनंगसेना को दूंगी और ब्राह्मणचर का सेवन मैं 260
SR No.002364
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages444
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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