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________________ श्री उपदेश माला गाथा ३७ जम्बूस्वामी की कथा ललितांग का आयुष्य कुछ लम्बा था। अतः देवयोग से वर्षा के दिनों में वह गंदा कुंआ पानी से लबालब भर गया; इससे पानी के बहाव के जोर से बाहर निकलने के साथ ही ललितांग बह कर बाहर निकला। इधर उसके घरवाले चिंता कर रहे थे। वह जाकर उनसे मिला और उन्हें सारी आपबीती सुनाई। अब उसने अपने मन में ठान ली कि भविष्य में वह कभी कामवासना के चक्कर में नहीं पड़ेगा। ललितांग का शरीर उस कष्टकर स्थिति में रहने के कारण अशक्त हो गया था, इसीलिए कुछ दिन घर में आराम और उपचार के बाद वह स्वस्थ और सशक्त हुआ। एक दिन वह वायुसेवन करने के लिए पूर्वपरिचित रास्ते से चला जा रहा था कि रानी ने उसे देखा, और सहसा उसकी आँखों के सामने सारा पूर्व दृश्य चलचित्र की तरह आने लगा। रानी ने फिर काम पिपासा शांत करने के लिए ललितांग को बुलाने दासी को भेजा। मगर ललितांग ने उसे टका-सा जवाब दे दिया- "मैं अब इस चक्कर में कभी नहीं फंसूंगा। देख लिया मैंने तुम्हारी रानी का प्रेम और कामवासना का नतीजा! जानबूझ कर विषयासक्ति में फंसकर अपार वेदना को कौन न्यौता दे?" ललितांग का स्पष्ट इन्कार सुनकर दासी वापिस लौट गयी। किन्तु तभी से ललितांग कामवासना से विरक्त होकर सुखी हुआ। इसीलिए हे स्त्रियों! मैं अगर विषयभोगों में आसक्त हो जाऊंगा तो ललितांग की तरह मुझे भी अपार दुःख उठाने पड़ेंगे। इसीलिए मेरा विषयासक्ति से दूर रहना ही अच्छा है।" ___ जम्बूकुमार ने ये और इस प्रकार के बहुत-से उपदेश देकर अपनी पत्नियों को समझाया। वह सारी रात इसी प्रकार के उत्तर-प्रत्युत्तरों में और प्रेरणादायिनी कहानियों के कहने-सुनने में बीत गयी। अंत में सभी पत्नियों ने निरुत्तर और विरक्त हृदय होकर उनसे कहा-"प्राणनाथ! आपने जिस ढंग से वैराग्यरस की अनुपम बातें कहीं, वह हमारे गले उतर गयी है। वास्तव में सब रसों में वैराग्य (शांत) रस ही उत्तम, स्थायी सुखशांति का दाता और स्वपरश्रेयस्कर है। महाव्रतों का पालन अतिदुष्कर होते हुए भी भवभ्रमण मिटाने के लिए अचूक है। जो वैराग्यरस से चूंट पीकर महाव्रतों की भलीभांति आराधना करता है, वह अवश्य ही मोक्ष प्राप्त करता है। हम आपकी सभी बातों से सहमत हैं और इस पथ में आपके साथ हैं।' ___चोरनायक प्रभव ने भी कहा-"जम्बूकुमारजी! मेरा भी आज अहोभाग्य था कि चोर होते हुए भी मैं आपकी वैराग्य पूर्ण बातें सुन सका और महाविषम विषयासक्ति का परिणाम जान सका। वास्तव में मोही जीवों के लिए विषयराग का छोड़ना अतिदुष्कर है! धन्य है आपको कि आपने यौवन वय और समस्त 105
SR No.002364
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages444
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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