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________________ साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी २३६ मानसिक सहिष्णुता और भावनात्मक सहिष्णुता। “सीओसिणच्चाई से निग्गंथे" महावीर का यह सूक्त उनके कण-कण में समाया हुआ था, यही कारण था कि पूज्य गुरुदेव की शारीरिक सहिष्णुता इस हद तक सध चुकी थी कि न वे सर्दी-गर्मी से प्रभावित होते और न किसी बीमारी एवं वेदना में व्यथित होते। अनेक बार तो अत्यधिक सहिष्णुता के कारण उनकी बीमारी एवं वेदना का उनके आस-पास रहने वाले संतों को भी अहसास नहीं हो पाता था। उनके चेहरे पर उभरती शांति की दिव्य छटा में वेदना की झलक भी नहीं मिल पाती थी। वे नहीं चाहते थे कि उनकी वेदना में दूसरे व्यक्ति भी सहभागी होकर वेदना या कष्ट का अनुभव करें। अस्वस्थ अवस्था में किसी को कुछ न कहना और समतापूर्वक सब सह लेना असम्भव नहीं तो कठिन अवश्य है। सहिष्णुता के बिना काटे की पीड़ा को सहना भी कठिन होता है। दूसरों के सुख के लिए स्वयं कष्ट सहना बिना साधना के सम्भव नहीं है। यह घटना प्रसंग उनकी कष्ट सहिष्णुता का जीवन्त निदर्शन हैसन् १९५६ जे.के. नगर में एल्यूमीनियम फैक्ट्री के मैनेजर ने गुरुदेव को कर्मचारियों के बीच प्रवचन एवं प्रेरणा देने का निवेदन किया। प्रवचन के लिए ११.३० बजे का समय निर्धारित किया गया। भोजन करते समय गुरुदेव को सूचना मिली कि ११ बजकर २० मिनिट हो गये हैं तो वे तत्काल भोजन को अधूरा छोड़कर नियत समय प्रवचनस्थल पर पहुँच गए। सारे मजदूर शामियाने में बैठ गए, जो बरामदे से काफी दूर था। गुरुदेव ने सोचा- 'वक्ता और श्रोता के बीच इतनी दूरी नहीं रहनी चाहिए।' वे तत्काल मजदूरों के पास जाकर धूप में बैठ गए। सन्तों ने प्रार्थना की- 'धूप में बैठने से आपको जुखाम हो जाता है अत: छाया में ही विराजने की कृपा करें।' पर गुरुदेव के मानस पर उस प्रार्थना का कोई असर नहीं हुआ। सब लोग श्रद्धाभिभूत होकर देखते रहे कि प्रतिदिन धूप में बैठने वाले छाया में थे और छाया में बैठने वाले धूप में। प्राकृतिक सर्दीगर्मी एवं वर्षाजन्य कष्टों में कायर न होने की प्रेरणा वे समय-समय पर देते रहते थे- 'प्रकृति पर कोई नियन्त्रण नहीं कर सकता। जिस समय प्रकृति की जो देन होती है, उसको उसी रूप में सहन करना लाभप्रद है। साधक
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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