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________________ वर्धमान विद्या ओम् ह्रीं श्रीं एँ ओम् नमो अरहओ भगवओं महावीरस्स सिज्झउ मे भगवइ महइ महाविज्जा वीरे वीरे महावीरे जयवीरे सेणवीरे वद्धमाणवीरे ज विज जयंते अपराजिते सव्वट्ठसिद्धे अणेहिए महाणसे महाबले स्वाहा ओम् नमो पुलाकलद्धीणं ओम् नमो कुट्ठबुद्धीणं ओम् नमो बीयबुद्धीणं ओम् नमो पयाणुसारीणं ओम् नमो संभिन्नसोयाणं ओम् नमो उज्जुमइणं ओम् नमो विउलमइणं महाविज्जे मम वंछियं कुरु कुरु शत्रुन् निवारय निवारय वर्धमानस्वामिन् ठः ठः ठः स्वाहा । इस वर्धमान विद्या से अभिमंत्रित वासक्षेप चावलों में मिलावें तथा सप्त मुद्राओं से 'ओम् ह्रीं श्रीं अर्हं ' ये अक्षर लिखते हुए उन चावलों को अभिमंत्रित करे। 1. पंच परमेष्ठि मुद्रा 2. कामधेनु मुद्रा 3. सौभाग्य मुद्रा 4. गरूड़ मुद्रा 5. पद्म मुद्रा 6. मुद्गर मुद्रा 7. हस्त मुद्रा । अभिमंत्रित इन चावलों को संघ में वितरित करें। शिष्य खमा. देकर मुहपत्ति का पडिलेहण कर गुरू महाराज को विधिवत् द्वादशावर्तवंदन करे | वंदन करते समय प्रतिमाजी पर पड़दा करें। वंदन हो जाने के बाद पडदा हटा दें। शिष्य खमा. देकर कहे - इच्छाकारेण तुम्हे अम्हं सम्मत्त सामाइयं सुय सामाइयं सव्वविरइसामाइयं आरोवेह | गुरू- आरोवेमो । शिष्य- इच्छं । खमा देकर कहे - संदिसह किं भणामो । गुरू- वंदित्तापवेयह । शिष्य हत्ति । खमा इच्छाकारेण तुम्हे अम्हं सम्मत्त सामाइयं सुय सामाइयं सव्वविरइसामाइयं आरोवियं ! गुरू म. शिष्य के सिर पर वासक्षेप डालते हुए कहें- आरोवियं आरोवियं आरोवियं खमासमणाणं हत्थेणं सुत्तेणं अत्थेणं तदुभएणं सम्मं धारणीयं चिरं पालणीयं गुरुगुणेहिं वड्ढाहि नित्थारगपारगो हो । शिष्य- इच्छामो अणुसट्ठि । खमा. तुम्हाणं पवेइयं संदिसह साहूणं पवेएमि! गुरू- पवेयह । शिष्य - इच्छं । कहकर शिष्य नवकार मंत्र गिनते हुए तीन प्रदक्षिणा दें। साधु साध्वी उनके सिर पर वासक्षेप डालें तथा संघ उन अभिमंत्रित चावलों से बधाये। 24 / योग विधि
SR No.002356
Book TitlePravrajya Yog Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhsagar
PublisherRatanmala Prakashan
Publication Year2006
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size5 MB
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