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________________ सा दंसण उज्जोय कर पास जिणेसर चहुं। धरइ जो नियमणे पास मितं परं केडिआ सेस जीय कुग्ग डंबरं, लहइ सो नरमहा निम्मलं भोयणं पिच्छइ जेण तत्तीयं सोहणं। श्री सर्वकार्य सिद्धिादायक श्री शान्तिधारा पाठः) ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अहँ वं मं हं सं तं वंवं ममं हंहं संसं तंतं पंपं डंडं म्वी म्वी क्ष्वी ध्वी क्ष्वी द्राँ द्राँ द्रीं द्रौं द्रावय द्रावय नमोऽर्हते ॐ ह्रीं क्रौं मम पापं खंण्डय खण्डय, हन हन, दह दह, पच पच, पाचय पाचय सिध्धिं कुरू कुरू। ॐ नमोऽहं डॅ म्वी क्ष्वी हं सं डं वं व्हः पः हः क्षाँ क्षीं झै क्षौं क्षः। 1 । ॐ हूँ हाँ हिँ ही हूँ हूँ हैं हैं ह्रौं हूँ हू: अ सि आ उ सा नमः मम पूजकस्य ऋधिं वृध्धिं कुरू कुरू स्वाहा। ॐ नमोऽर्हते भगवते श्रीमते डः डः डः मम श्रीरस्तु, वृध्धिरस्तु. तुष्टिरस्तु, पुष्टिरस्तु, शान्तिरस्तु, कान्तिरस्तु, कल्याणमस्तु मम सर्व कार्य सिद्धयर्थं सर्व विध्न निवारणार्थ श्रीमद् भगवते सर्वोत्कृष्ट त्रैलोक्यनाथार्चितपादपद्म अर्हत्-परमेष्ठि-जिनेन्द्र देवाधिदेवाय नमोनमः। मम श्री शान्तिदेव पादपद्म प्रसादात् सधर्म-श्री- बलायुरारोग्यैश्चर्याभिवृद्धिरस्तु, स्वस्तिरस्त धान्यसमृध्धिरस्तु श्री शान्तिनाथो मां प्रति प्रसीदतु, श्री वीतरागदेवो मां प्रति प्रसीदतु, श्री जिनेन्द्रः परममांगल्य-नामधेयो ममेहामुत्र च सिध्धिं तनोतु। ॐ नमोऽर्हते भगवते श्रीमते श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथाय, तीर्थकराय, रत्नत्रयरूपाय, अनन्तचतुष्टयसहिताय, धरणेन्द्रफणमौलि मण्डिताय, समवसरणलक्ष्मी शोभिताय, इन्द्रधरणेन्द्रचक्रवर्त्यादिपूजित पादपद्माय, केवलज्ञान लक्ष्मी शोभिताय, जिनराजमहादेवाष्टादशदोषरहिताय,
SR No.002355
Book TitleParmatma ka Abhishek Ek Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJineshratnasagar
PublisherAdinath Prakashan
Publication Year
Total Pages106
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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