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________________ जब, ऐसे तीर्थजल के पवित्र पानी मात्र से इतना प्रभाव अनुभव में आता हो तब वही जल करूणा के सागर-वात्सल्य से परमात्मा का स्पर्श पाया हुआ जल कितना प्रभावशाली बन जाता होगा उसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है। औषध मिश्रित मंत्रोच्चारपूर्वक परमात्मा को स्पर्श किया हुआ जल अचिन्त्यशक्ति युक्त विशेष प्रभावशाली बन जाता है उसमें कोई शंका नहीं। इस प्रकार के जल से निश्चित रूप से सभी प्रकार के इति-उपद्रव-मारी-मरकी-रोग-शोक -भय-दीनता-दारिद्रता-पर विद्या का दुष्प्रभाव-ग्रहों का दुष्प्रभाव दूर हो जाता है और जीवन में सुख-शान्ति एवं समृद्धि की प्राप्ति होती है। स्नात्र जल के छिटकाव से जादव की जरा दूर हुई। स्नात्र जल के प्रभाव से ही श्रीपाल राजा का कोढ़ रोग दूर हुआ साथ में रहे हुए सात सौ कोढ़ियों का कोढ़ रोग दूर हुआ। और काया निरोगी कंचन जैसी बन गयी। इतिहास के पन्नों पर ऐसे कई किस्से मौजूद हैं। नवांगी टीकाकार प.पू.आचार्यदेव श्री अभयदेवसूरि म.सा. का कोढ़ रोग अभिषेक जल से ही दूर हुआ था। प्रहलाद राजा का दाह रोग इसी तरह अभिषेक जल से ही दूर हुआ था। ... हजारों गाँवों में, नगरों में भूत-प्रेत उपद्रव आदि में उपद्रव शान्ति अभिषेक जल की शान्तिधारा से ही हुई है। सोलहवें तीर्थंकर श्री शान्तिनाथ भगवान जब माता अचिरादेवी के गर्भ में थे तब नगरं मरकी रोग फैला उसके निवारण हेतु अचिरा माता के स्नात्र जल का छिड़काव पूरे नगर में किया गया और फलस्वरूप पूरा नगर रोग मुक्त हुआ। श्री संघाँ में आज वह विधान रूप में प्रस्थापित है। जब कहीं भी स्नात्रपूजा होती है तब समग्र अभिषेक जल को विधिपूर्वक एक उवस्सगळं एवं बृहद् शान्ति स्तोत्र
SR No.002355
Book TitleParmatma ka Abhishek Ek Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJineshratnasagar
PublisherAdinath Prakashan
Publication Year
Total Pages106
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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