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________________ अष्टोतरशत अभिषेक के अनुसरण रूप लगभग सोलहवीं सदी में किसी ने अष्टोतरी स्नात्र की रचना की उसके बाद सत्रहवीं सदी में श्री सकलचंद्र गणि ने शान्ति स्नात्र नाम से प्रसिद्ध एक अभिषेक विधि का निर्माण किया जो विशेष प्रसिद्ध में आया। वर्तमान में पूज्य वीर विजयजी म.सा.कृतस्नात्र पूजा जो प्रायः सभी श्वेताम्बर जैन मंदिरों में प्रतिदिन करायी जाती है। शक्र देवेन्द्र देवराज वरूण महाराज की आज्ञा में वरूणकायिक, वरूण देवकायिक, नागकुमार, नागकु ममारियाँ, उदधिकुमार-कुमारियाँ, स्तनित कुमार-कुमारियाँ और दूसरे भी उस प्रकार के देव-देवियाँ वृष्टि करने वाले देव-असुर और नागकुमार हैं। ऐसा जिन आगम में कहा गया है। रेवती नक्षत्र पर सूर्य आने से वसन्त ऋतु में बड़े उत्साहपूर्वक पुण्यपात्र जिन स्नात्र करना चाहिये। साथ में देश दिक्पाल और नवग्रहों की पूजा करनी • चाहिये, जितना समय आकाश में रेवती नक्षत्र का भोग सूर्य के साथ हो उतने दिन जिनार्चन करना ये जगत में वृष्टि और पुष्टि के लिये हैं। (जगद्गुरु श्री हीरसूरिश्वरजी म.सा. कृत 'मेघ महोदये') स्नात्रमहोत्सव में परमात्मा के जन्म कल्याणक महोत्सव का वर्णन अवधि-नाणे अवधि-नाणे, उपना जिनराज, जगत जस परमाणुआ, विस्तर्या विश्व जंतु सुखकार; मिथ्यात्व तारा निर्बळा, धर्म उदय परभात सुंदर; माता पण आनंदिया, जागती धर्म विधान; जाणंती जग - तिलक समो, होशे पुत्र प्रधान। दुहा : शुभ लग्ने जिन जनमिया, नारकीमां सुख ज्योत, सुख पाम्या त्रिभुवन जना, हुओ जगत उद्योत।
SR No.002355
Book TitleParmatma ka Abhishek Ek Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJineshratnasagar
PublisherAdinath Prakashan
Publication Year
Total Pages106
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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