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________________ स्नेह-प्रेम से भर देता है। आये हुए दुःख-कष्ट-संकट को भी दूर कर उसका सम्यक् संरक्षण करता है। जिसने प्रभु का शरण दीनतापूर्वक स्वीकारा है, उसके संरक्षण के साथ उसकी लाज भी रखने का ज्वलन्त उदाहरण महाभारत में आता हुआ सती द्रौपदी का निम्नलिखित प्रसंग है कर्म के संयोग से पाण्डवों की पत्नी सती द्रौपदी के चीर यानी वस्त्र जब भरी सभा में दुःशासन ने खींचे तब द्रौपदी श्री युधिष्ठिर आदि पाँचों पाण्डवों की तरफ देख रही है तथा अपने अन्तःकरण के नाद से प्रभु को पुकार रही है। तत्काल वहाँ पर अदृश्य रूप में श्रीकृष्णजी नवसौ नव्वाणु (६६६) चीर-वस्त्र द्वारा पूरी सती द्रौपदी जी की लाज रखते हैं । इसीलिए तो कहा गया है किलघुता से प्रभुता मिले, प्रभुता से प्रभु दूर । जो लघुता दिल में धरे, तो सभी संकट दूर ॥ आत्मा जप-तप-क्रिया जो कोई साधन करता है, उसके पीछे लघुता हो तो साधन सफल होता है । (८) समता-नवधा भक्ति पैकी यह भक्ति का पाठवाँ प्रकार है। 'सम' यानी राग-द्वेष रहित मध्यस्थ भाव ।
SR No.002338
Book TitleJinmandiradi Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri, Ravichandravijay
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages220
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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