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________________ * गुरणश्रवणम् * [ ७६ ] गुए.श्रवरणमात्रेण, निरीहाणां महात्मनाम् । बोधं लभन्ते सुलभ-बोधिनः सार्थवाहवत् ॥ ७६ ॥ पदच्छेदः-गुणश्रवणमात्रेण निरीहाणां महात्मनाम् बोधं लभन्ते सुलभबोधिनः सार्थवाहवत् । अन्वयः-सुलभबोधिनः निरीहाणां महात्मनां गुणश्रवणमात्रेण सार्थवाहवत् बोध लभन्ते । ___ शब्दार्थः-सुलभबोधिनः=सुलभ बोध वाले मनुष्य, निरीहाणां निष्काम भावना वाले, महात्मनां महापुरुषों के, गुणश्रवणमात्रेण गुणों को सुनने मात्र से ही, सार्थवाहवत् सार्थवाह की तरह, बोधं बोध को (ज्ञान को), लभन्ते प्राप्त करते हैं। ___ श्लोकार्थः-सुलभ बोध वाले मनुष्य निष्काम भावना वाले महापुरुषों के गुण सुनने मात्र से ही सार्थवाह की तरह बोध पाते हैं। संस्कृतानुवादः-सुलभबोधिनो जना: निष्कामानां महापुरुषाणां गुणश्रवणमात्रेण सार्थवाहः इव बोधं लभन्ते ।। ७६ ।। ( ७७ )
SR No.002337
Book TitleDharmopadesh Shloka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1993
Total Pages144
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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