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________________ * क्रोधः * [ ३७ ] कोपं न कुर्यानिर्वाण-मार्गलुण्टाकपोषकम् । कुणालानगरी - कायो - त्सर्गिक्षपकयोर्यतः ॥ ३७ ॥ . पदच्छेदः-कोपं न कुर्यात् निर्वाणमार्गलुण्टाकपोषकम्, कुरणालानगरी-कायोत्सगिक्षपकयो: यतः । अन्वयः-निर्वाणमार्गलुण्टाकपोषकम्, कोपं यतः कुणालानगरीकायोत्सर्गिक्षपकयोः इव न कुर्यात् । शब्दार्थः-निर्वाणस्य मार्गस्तस्य ये लुण्टाकास्तेषां पोषकस्तं मार्गलुण्टाकपोषकम मोक्षमार्ग के लुटेरों को पोषण देने वाला, कोपं क्रोध को, यतः क्योंकि कुणालानगरीषु कायोत्सर्गिनी यो क्षपको तयोः कुणालनगरीकायोत्सर्गिक्षपकयोः इव कुणालनगरी में कायोत्सर्ग करने वाले मुनियों की तरह, न कुर्यात् नहीं करना चाहिए। श्लोकार्थः-मोक्षमार्ग के लुटेरों का पोषण करने वाले क्रोध को कुणालानगरी में काउसग्ग करने वाले मुनियों की तरह नहीं करना चाहिए। संस्कृतानुवादः-मोक्षमार्गस्य तस्कराणां पोषकं क्रोधं कुणालानगरी कायोत्सर्गिक्षपकयोरिव न कुर्यात् ॥ ३७ ।। ( ३८ )
SR No.002337
Book TitleDharmopadesh Shloka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1993
Total Pages144
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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