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________________ * विषयः * [ ९७ ] विषयरसलोलुपः सन् बहुसुकृतं कण्डरीकवज्जह्यात् । अथ पुण्डरीकनृपवन्मनुते हालाहलं विषयान् ॥१७॥ पदच्छेदः-विषयरसलोलुपः सन् बहुसुकृतं कण्डरीकवत् जह्यात् अथ पुण्डरीकनृपवत् मनुते हालाहलं विषयान् । अन्वयः-प्राणी विषयरसलोलुपः सन् कण्डरीकवत् बहुसुकृतं जह्यात् अथ सः पुण्डरीकनृपवत् विषयान् हालाहलं मनुते । शब्दार्थः-प्राणी मानव, विषयाणां रसस्तस्मिन् लोलुपः विषयरसलोलुपः सन् विषयों के रस में लालसा रखता हुआ, कण्डरीकवत् कण्डरीक की तरह, बहुसुकृतं= बहुत पुण्य को। जह्यात् =छोड़ दे। हालाहलं विष, मनुते मानता है। ___श्लोकार्थः-विषयों के रस में लालसा रखते हुए मानव कण्डरीक की तरह बहुत पुण्य को छोड़ देता है और राजा पुण्डरीक की तरह सांसारिक भोगों को विष तुल्य समझता है। संस्कृतानुवादः-प्राणी विषयरसेषु सतृष्णः सन् कण्डरीकवत् बहुपुण्यं जह्यात् । अथ सः पुण्डरीकनृपतिरिव सांसारिकभोगान् विषं मनुते ।। ६७ ॥ (६८ )
SR No.002337
Book TitleDharmopadesh Shloka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1993
Total Pages144
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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