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________________ * धर्मः : 8 [ १ ] समयोपस्थितं धर्म- मकुर्वन् धर्म- मकुर्वन् विषयस्पृहः । दुःखी स्यान्मृतमातङ्गाऽऽमिषार्थिद्विकवज्जडः ॥ ६१ ॥ पदच्छेदः - समयोपस्थितं धर्मम् प्रकुर्वन् विषयस्पृहः दुःखी स्यात् मृतमातङ्गाऽऽमिषार्थि द्विकवत् जडः । अन्वयः - विषयस्पृहः जडः समयोपस्थितं धर्मम् अकुर्वन् मृतमातङ्गाऽऽमिषार्थि द्विकवत् दुःखी स्यात् । शब्दार्थ : - समयोपस्थितम् = समय पर उपस्थित हुए, धर्मम् = धर्माचरण को, अकुर्वन् = नहीं करते हुए, विषयस्पृहः = विषयों की अभिलाषा रखने वाला, जडः = जड़ मनुष्य, मृतमातङ्गाऽऽमिषार्थि द्विकवत् मरे हाथी के मांस को चाहने वाले द्विक की तरह, दुःखी स्यात् = दुःखी होता है । श्लोकार्थ :- विषयों की अभिलाषा रखने वाला जड़ मनुष्य समय पर उपस्थित धर्माचरण को नहीं करने पर मरे हाथो के मांस को चाहने वाले द्विक को तरह दुःखी होता है । संस्कृतानुवादः - विषयस्पृहो जडो मानवः समयोपस्थितं धर्माचरणमकुर्वन् मृतमातङ्गाऽऽमिषार्थि द्विकः इव दुःखी भवेत्, नात्र संशयः ।। ६१ ।। ( १२ )
SR No.002337
Book TitleDharmopadesh Shloka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1993
Total Pages144
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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