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________________ सुमेरुपर्वतादपि श्रेष्ठतरं मन्दिरं अकारि। जिनमन्दिरनिर्माणानन्तरं सद्रत्नप्रभया सूर्यमतिशायिनी प्रभोः श्रीऋषभदेवस्य भगवतः प्रतिमा निर्मापिता । *हिन्दी अनुवाद-सर्वप्रथम श्रीभरतचक्रवर्ती ने प्रथमतीर्थंकर श्री ऋषभदेव भगवान् का ऐसा दिव्य मन्दिर बनवाया, जिसमें जटित रत्न अपने किरणजाल से समस्त दिशाओं को श्वेताभ बना रहे थे, तथा उसको विशालता गगनचुम्बी सुमेरुपर्वत से भी श्रेष्ठतर थी। जिनमन्दिर के बाद प्रभु श्रीऋषभदेव भगवान को सूर्यातिशायिनी प्रतिमा-मत्ति का निर्माण करवाया ।। ५६ ।। [ ५७ ] । मूलश्लोकःभवद् याता यास्याज्जिनवरगुरूणां च भवनं , विमानाभं चक्रे भवभयहरीस्ताश्च प्रतिमाः । शुभे लग्ने काले ग्रहगणसमेते जिनगृहे , प्रतिष्ठाः सद्व्यः प्रवरविधिना वै च विदधे ॥ ५७ ॥ + संस्कृतभावार्थः-प्रतीत-वर्तमान-अनागत-कालीनश्रीजिनेश्वरदेवानां जन्म-जरामरणभयविनाशिनीनां प्रतिमानामुच्चैः स्थितेषु ग्रहनक्षत्रगणे शुभलग्नमुहूर्तादिषु -- ७३ ---
SR No.002336
Book TitleJinmurti Pooja Sarddhashatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1994
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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