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________________ स्याद्वादबोधिनी-३४ संसार के समस्त पदार्थ परिणामी हैं। अतः परमाणु ही क्रमशः परिणामी होकर विश्व रूप की संरचना करते हैं। जैन कर्मवादी हैं। यह स्वीकार्य है कि कर्म विश्वजगत् की रचना करते हैं। अतः ईश्वर विश्व का यानी जगत् का कर्ता नहीं है। अनेक शिल्पी अनेक भवनों को एक सा बनाते हैं, यह प्रत्यक्षसिद्ध है । अतः ईश्वर के विषय में एक होने की कल्पना भी ठीक नहीं है। यदि वह एक है तो 'वह' भिन्न स्वभाव वालों को (प्रशंसक, निंदक) क्यों बनाता है। मूर्ख भी अपने विरोधी को उत्पन्न नहीं करता। अतः यह भी सिद्ध हैवह 'सर्वज्ञ' भी नहीं हो सकता। कर्मों के अनुसार सुखी, दुःखी लोगों को देखने से यह भी स्पष्ट हो जाता है कि, वह स्वतन्त्र (स्ववशः) भी नहीं है। यदि ऐसा होता तो संसार में विषमता नहीं होती; जबकि संसार में सर्वत्र विषमता दिखाई देती है। 'नित्यत्व' भी उसका समीचीन लक्षण नहीं है, क्योंकि नित्यत्व-कूटस्थ-अविचल रूप होता है। कर्ता में तो परिणाम परिणति (परिवर्तन) देखे जाते हैं । अतः विश्वजगत् का कर्ता ईश्वर नहीं है, ऐसा कहा है ।
SR No.002335
Book TitleSyadwad Bodhini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinottamvijay Gani
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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