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________________ * ग्यारहवें गणधर श्रीप्रभास * _ 'मोक्ष का सन्देह-संशय' पूर्वोक्त प्रथम श्रीइन्द्रभूति से लेकर यावत् दशम श्रीमेतार्य पर्यन्त दसों विप्र पण्डितों को प्रवजित-दीक्षित सुनकर ग्यारहवें श्रीप्रभास नामक विप्र पण्डित ने भी विचार किया कि जिनके श्रीइन्द्रभूति आदि दसों अग्रज द्विज पण्डित अपने शिष्य परिवार सहित उनके शिष्य बने, वे मेरे भी पूज्य हैं। मैं भी अपने शिष्यों सहित वहाँ जाऊँ और अपने हृदय में विद्यमान सन्देह-संशय को दूर करू । - इस तरह विचार करके श्रीप्रभास विप्र पण्डित भी अपने तीन सौ छात्रों के परिवार सहित सर्वज्ञ विभु श्रीमहावीर भगवान के पास आये। उसी समय प्रभु ने भी मधुरवाणी में उसके नाम और गोत्र का उच्चारण करते हुए कहा कि "निर्वाणविषयसन्देह-संयुतं च प्रभासनामानम् । ऊचे विभुर्यथास्थं, वेदार्थ किं न भावयसि ? ॥" ( १३३ )
SR No.002334
Book TitleGandharwad Kavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandiram
Publication Year1987
Total Pages442
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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