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________________ इस ज्ञान-दर्शन के उपयोग स्वरूप समझना चाहिये तथा श्रात्मा उपयोगमय होने से 'विज्ञानघन' शब्द से उसे ज्ञान-दर्शन के उपयोग स्वरूप वाला जानना चाहिये | कारण कि ग्रात्मा के असंख्यात प्रदेश हैं । प्रसंख्यात प्रदेशी आत्मा असंख्याते प्रसंख्यात प्रदेश ज्ञान का अनन्त पर्याय वाला है । ऐसे ज्ञान-दर्शन के उपयोग स्वरूपवन्त आत्मा में प्रपने विषय स्वरूप में रहे हुए पृथिव्यादि पाँचों भूतों द्वारा अथवा पाँच भूतों से बने हुए घटपटादि पदार्थों द्वारा घटपटादिक का ज्ञानोपयोग उत्पन्न होता है । घटपटादिक के ज्ञान से परिगत आत्मा इस अपेक्षा से विषय स्वरूप में हेतुभूत बने हुए घटपटादिक से पैदा हुआ कहा जाता है । कारण कि घटपटादिक ज्ञान का परिणाम घटपटादि पदार्थों की अपेक्षावन्त ही होता है । इसलिये तद्-तद् उपयोग स्वरूप आत्मा उत्पन्न हुआ, ऐसा अवश्य ही कह सकते हैं । इस तरह प्रत्यक्ष स्वरूप में रहे हुए पृथिव्यादि भूतों से अथवा इनसे बनी हुई घटपटादि वस्तुनों से, तद्-तद् वस्तुत्रों के उपयोग स्वरूप में आत्मा उत्पन्न हो करके, जब उन वस्तुओंों का विनाश हो जाय या वे अपनो दृष्टि से बाहर निकल जायें तब, तद्-तद् विषयों का उपयोगवन्त प्रात्मा भी विनाश पामता है और अन्य उपयोग स्वरूप आत्मा उत्पन्न होता है । इतना ( ४३ )
SR No.002334
Book TitleGandharwad Kavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandiram
Publication Year1987
Total Pages442
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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