SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 16
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अन्य मन्दिरों के परिकरों, गादियों व देरियों आदि पर विक्रम सं. 1118 से 1138 तक के लेख उत्कीर्ण हैं । विक्रम की सत्रहवीं शताब्दी में जीर्णोद्धार होकर विक्रम सं. 1675 माघ शुक्ला 4 के दिन श्री विजय देवसूरिजी के हाथों पुनः प्रतिष्ठा होने का लेख विद्यमान है । इन सबसे सिद्ध होता है कि आरासणा नगरी में अनेकों प्राचीन मन्दिर थे । लेकिन वर्तमान मन्दिर लगभग विक्रम की 12 वीं शताब्दी के हैं । विशिष्टता उपदेशसप्तती में कही कथानुसार श्री गोगामंत्री के पुत्र श्री पासिल इस नगरी में रहते थे। उनकी पूर्व संचित पुण्याई कम हो जाने पर उनपर लक्ष्मी की कृपा कम हो गई थी । एक दिन व्यापार हेतु वे पाटण गये तब देव दर्शनार्थ राजविहार मन्दिर गये व खूब ध्यानपूर्वक निरीक्षण करने लगे । वहाँ उपस्थित हाँसी नाम की श्रीमंतश्राविका ने उनकी कृपण अवस्था देखकर मजाक करते हुए कहा कि क्या तुम्हे ऐसा मन्दिर बनवाना है, जो इतनी बारीकी से निरीक्षण कर रहे हो? दुखी हृदयी श्री पासिल ने नम्रता पूर्वक उत्तर दिया कि बहिन, यह कार्य मेरे लिए दुर्लभ है । लेकिन अगर मैने ऐसा मन्दिर बनवाया तो आपको आना होगा, यह मेरी विनती है । पासिल के हृदय में हाँसी श्राविका की बात गूंज रही थी । उसने श्री अंबिका देवी की आराधना आरंभ की । भाग्य योग से श्री अंबिका देवी प्रत्यक्ष हुई व सीसा नामक धातु की खान चान्दी हो जाने का वरदान दिया । वरदान सफल होंने पर श्री पासिल ने आरासणा में छटा युक्त पहाड़ियों के बीच, विभिन्न प्रकार की कलाओं से परिपूर्ण-देवविमान तुल्य श्री नेमिनाथ भगवान के भव्य मन्दिर का निर्माण कार्य प्रारंभ किया । एक वक्त उधर विचरते गुरु महाराज ने पूछा कि पासिल, चैत्य निर्माण का कार्य सुचारु रूप से चल रहा है न, पासिल ने उत्तर दिया कि देव और गुरु कृपा से ठीक चल रहा है । इस जबाब से देवी को क्रोध आया कि इसने मेरा आभार नहीं माना । देवी के क्रोध के कारण मन्दिर का कार्य शिखर तक आकर रुक गया। पासिल ने दीर्घ द्रष्टि से सोचकर पाटण से गुरु महाराज को व हाँसी श्राविका को पधारने के लिए निमंत्रण भेजा । आचार्य श्री वादीदेवसूरिजी ने आकर अपने सुहस्ते प्रतिष्ठा बड़े समारोह के साथ सम्पन्न करवाई । आश्चर्यचकित हाँसी श्राविका ने भी पासिल से आज्ञा लेकर एक विशाल मेघनाद मण्डप बनवाया जिसमें नौ लाख रुपये खर्च हुए । सिर्फ मण्डप में नौ लाख रुपये खर्च हुवे तो पूरे मन्दिर में कितने रुपये खर्च हुए होंगे? यह स्थान प्राचीनता व विशिष्ट घटनाओं के कारण तो विशेषता रखता ही है, साथ में शिल्पकला में भी अपना विशेष स्थान रखता है । प्रतिवर्ष माघ शुक्ला पंचमी को सभी मन्दिरों में ध्वजा चढ़ाई जाती है । ___ अन्य मन्दिर 8 इस मन्दिर के पास ही इसके अतिरिक्त 4 और विशाल व कलापूर्ण श्री महावीर भगवान, श्री पार्श्वनाथ भगवान, श्री शान्तिनाथ भगवान व श्री संभवनाथ भगवान के मन्दिर हैं । कला और सौन्दर्य यह स्थल जंगल में पहाड़ों के बीच में रहने के कारण यहाँ का प्राकृतिक सौन्दर्य अत्यन्त मनोरम है ही, यहाँ की शिल्पकला भी बेजोड़ है । यहाँ की कला देखते ही आबू देलवाड़ा, राणकपुर, जैसलमेर, गिरनार व खजुराहो आदि याद आ जाते हैं । श्री महावीर भगवान के मन्दिर के छतों में पत्थर पर बारीकी से की हुई शिल्पकला देखते ही बनती है । जैसे भावी चौबीसी के माता-पिता व छत्रघर, वर्तमान चौबीसी तथा उनके माता-पिता, चौदह स्वप्न, मेरु पर्वत पर इन्द्र महाराज द्वारा जन्माभिषेक, पंचाग्नि तप करते हुए कमठ योगी को श्री पार्श्वनाथ कुमार अहिंसा की बात समझाकर जलते हुए काष्ठ में से नाग-नागिन को निकलवाते हुए, भगवान को श्री धरणेन्द्रदेव नमस्कार करते हुए, श्री शान्तिनाथ भगवान का समवसरण श्री नेमिनाथ भगवान के पाँच कल्याणक आदि अनेकों भावपूर्ण प्रसंग पाषाण में उत्कीर्ण है । सारे मन्दिरों में भिन्न-भिन्न प्राचीन कला के नमूने है, जिनका जितना वर्णन करें, कम है । मार्ग दर्शन यहाँ से नजदीक का रेल्वे स्टेशन आबू रोड़ लगभग 22 कि. मी. है । यहाँ का बस स्टेण्ड अम्बाजी है, जो कि यहाँ से एक कि. मी. है । वहाँ टेक्सी की सुविधा उपलब्ध है । मन्दिर तक पक्की सड़क है । यह स्थल अहमदाबाद से हिम्मतनगर ईडर, खेड़ब्रझा होते हुए 180 कि. मी. दूर है । यहाँ से तारंगाजी 55 कि. मी. माऊन्ट आबू 55 कि. मी. दूर है । सभी जगहों से बस व टेक्सी की सुविधा है । 492
SR No.002332
Book TitleTirth Darshan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
PublisherMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publication Year2002
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy