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________________ क्षेत्र पुराने जमाने में देवपट्टण, पाटण, सोमनाथ, प्रभाष, चन्द्रप्रभाष, आदि नामों से विख्यात था । जैन आगम ग्रंथ "बृहत् कल्पसूत्र” में भी इस तीर्थ का उल्लेख है । विक्रम की चौथी शताब्दी में मलेच्छ राजाओं के आक्रमण से वल्लभीपुर भंग हुई तब आकाशमार्ग द्वारा वहाँ से अम्बादेवी आदि की मूर्तियाँ यहाँ लाने का उल्लेख मिलता है । चौदहवीं शताब्दी में जिनप्रभसूरिजी द्वारा रचित विविध तीर्थ कल्प में वि. सं. 1361 में श्री मेरुतुंगसूरिजी द्वारा रचित श्री प्रबंधचिन्तामणि ग्रंथ में भी इस तीर्थ का उल्लेख है । गुर्जर नरेश सिद्धराज जयसिंह, मंत्री वस्तुपाल - तेजपाल, पेथड़शाह समरशाह, राजसी संघवी आदि श्रेष्ठीगण यहाँ यात्रार्थ पधारे थे, ऐसा उल्लेख मिलता है । कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचन्द्राचार्य के सदुपदेश से कुमारपाल राजा द्वारा यहाँ मन्दिर बनवाने का भी उल्लेख है । मोहम्मद गजनवी के समय व बाद में मुसलमानों के राज्यकाल में इस तीर्थ को भारी क्षति पहुँची थी, ऐसे उल्लेख मिलते हैं । जगतगुरु विजयहीरसूरीश्वरजी के शिष्य विजयसेनसूरिजी की निश्रा में वि. सं. 1666 पौष शुक्ला 6 से माघ शुक्ला 6 तक यहाँ पर 5 बार अंजनशलाका व प्रतिष्ठा होने का उल्लेख है । वि. सं. 1876 में विजयजिनेन्द्रसूरिजी के उपदेश से पुनः जीर्णोद्धार हुआ था । अंतिम जीर्णोद्धार होकर वि. सं. 2008 माघ शुक्ला 6 के दिन आगमोद्धारक आचार्य देव आनन्दसागरसूरिजी के पट्टविभूषण आचार्य श्री चन्द्रसागरसूरिजी के हस्ते प्रतिष्ठा संपन्न हुई । सब वृत्तांतों से इस तीर्थ की प्राचीनता स्वतः सिद्ध हो जाती है । विशिष्टता यह तीर्थ श्री आदिनाथ प्रभु के प्रथम पुत्र श्री भरत चक्रवर्ती द्वारा स्थापित किया गया माना जाता है। प्रथम तीर्थंकर के काल से लेकर चरम तीर्थंकर के काल तक अनेकों चक्रवर्तियों, भाग्यशाली राजाओं, मंत्रियों व श्रेष्ठियों ने यहाँ की यात्रा की है। वि. सं. 1264 में श्री देवेन्द्रसूरिजी ने यहीं पर 5325 श्लोकों में श्री चन्द्रप्रभ चरित्र की रचना की थी । विक्रम की चौदहवीं शताब्दी में श्री धर्मघोषसूरिजी ने यहीं पर मंत्रगर्भित स्तूति की रचना करके शत्रुंजय गिरि जूना कपर्दियक्ष को प्रतिबोधित किया था । प्रतिवर्ष माघ शुक्ला 6 को ध्वजा चढ़ाई जाती है । के अन्य मन्दिर इस मन्दिर के निकट ही 7 और 584 मन्दिर हैं व गाँव में एक मन्दिर है । इस मन्दिर के नीचे भाग में एक आगम मन्दिर है । पास के मन्दिर में श्री डोकरिया पार्श्वनाथ व श्री मल्लिनाथ भगवान की प्रतिमाएँ प्राचीन, सुन्दर व चमत्कारिक हैं । कला और सौन्दर्य सरस्वती नदी के तट पर समुद्र के किनारे बसे गाँव में इस मन्दिर का दृश्य अत्यन्त मनोरम है । मन्दिर की कला सराहनीय है । नव गंभारों से सुशोभित विशाल सभा मण्डप अि दर्शनीय है । इस ढंग का सभा मंडप अन्यत्र नहीं है। यह स्थान प्राचीन होने के कारण गाँव में स्थित मस्जिदों आदि में प्राचीन शिल्प कला के दर्शन होते है I कुछ मस्जिदों में स्थित पुरानी कलाकृतियों से यह प्रतीत होता है कि जैन मन्दिरों को मस्जिदों में परिवर्तित किया गया होगा मार्ग दर्शन यहाँ से नजदीक का रेल्वे स्टेशन वेरावल लगभग 7 कि. मी. हैं, जहाँ से आटो, बस व टेक्सी की सुविधा उपलब्ध है । बस स्टेण्ड मन्दिर से सिर्फ 100 मीटर है । मन्दिर तक पक्की सड़क है । बस व कार मन्दिर तक जा सकती है । । सुविधाएँ ठहरने के लिए निकट ही धर्मशाला है, जहाँ पानी, बिजली, ओढ़ने-बिछाने के वस्त्र व भोजनशाला की सुविधा है । पेढ़ी श्री प्रभाष पाटण जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ, जैन देरासरनी शेरी, पोस्ट प्रभाष पाटण - 362 268. जिला : जूनागढ़, प्रान्त : गुजरात, फोन : 02876-31638.
SR No.002332
Book TitleTirth Darshan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
PublisherMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publication Year2002
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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