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________________ के समय की मानी जाती है । कहा जाता है यहाँ की अधिष्ठायिका श्री चामुण्डादेवी को भी आचार्य श्री रत्नप्रभसूरीश्वरजी ने प्रतिबोधित करके सम्यक्त्वी बनाकर श्री सच्चियायका माता नाम से अलंकृत किया, जिसकी ही दिव्य शक्ति से गौ-दुग्ध एवं बालू से भगवान महावीर की प्रतिमा बनी व आचार्य श्री द्वारा प्रतिष्ठित की गई, जो अभी विद्यमान है । प्रतिवर्ष फाल्गुन शुक्ला 3 को वार्षिक मेला लगता है, जब हजारों भक्तगण भाग लेकर प्रभु भक्ति का लाभ लेते हैं । अन्य मन्दिर इस मन्दिर से लगभग एक कि. मी. दूर गाँव के पूर्व में टेकरी पर दादावाड़ी है जहाँ आचार्य श्री रत्नप्रभसूरीश्वरजी आदि की चरण-पादुकाएँ विराजित हैं । श्री सच्चियाय माताजी का प्रसिद्ध मन्दिर भी यहाँ से लगभग एक कि. मी. दूर हैं । कला और सौन्दर्य के शिल्प और कला की दृष्टि से ओसियाँ विश्व में प्रसिद्ध है । पत्थरों पर खुदी हुई यहाँ की कलात्मक प्रतिमाएँ अद्वितीय हैं । भगवान महावीर का मन्दिर व अन्य मन्दिर अपनी विशालता, कलागत विशेषता एवं सौन्दर्य के कारण विश्व-विख्यात है । रंग-मण्डप में स्तम्भों पर नाग-कन्याओं के दृश्य एवं दिवालों पर देवी-देवताओं के दृश्य अति सुन्दर ढंग से अंकित हैं । इसके अतिरिक्त देहरियों पर भगवान नेमिनाथ का जीवनचरित्र, भगवान महावीर का अभिषेक-उत्सव एवं गर्भहरण का दृश्य बड़ा ही सजीव चित्रण किया हुआ है । अष्ट पहलू मण्डप में आचार्य श्री द्वारा अपने साधु एवं श्रावकों को उपदेश देने के चित्र अंकित हैं । नृत्य मण्डप के गुंबज में नृत्यकाएँ साज के साथ नृत्य करती हुई अति आकर्षक रमणीय मुद्रा में अंकित हैं । मन्दिर की भमती में प्रसिद्ध तोरण की कारीगरी एवं बनावट अति आकर्षक है । यह स्थल श्री महावीर जिनालय-ओसियाँ 278
SR No.002331
Book TitleTirth Darshan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
PublisherMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publication Year2002
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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