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________________ श्री बामणवाड़ तीर्थ तीर्थाधिराज श्री महावीर भगवान, पद्मासनस्थ, प्रवाल वर्ण, लगभग 60 सें. मी. (श्वे. मन्दिर) । तीर्थ स्थल सिरोही रोड़ से 7 कि. मी. दूर वीरवाड़ा के पास जंगल में पहाड़ी की ओट में । प्राचीनता शिलालेखों में इसका प्राचीन नाम ब्राह्मणवाटक आता है । यह तीर्थ जीवित स्वामी के नाम से प्रसिद्ध है । तपागच्छ पट्टावली के अनुसार श्री संप्रति राजा ने यहाँ मन्दिर बनवाया था । संप्रति राजा को प्रतिवर्ष पांच तीर्थों की चार बार यात्रा करने का नियम था, जिनमें ब्राह्मणवाड़ का नाम भी आता है। श्री नागार्जुनसूरिजी, श्री स्कन्दनसूरिजी व श्री पादलिप्तसूरिजी आचार्यों को भी पांच तीर्थों की यात्रा का नियम था, उनमें भी ब्राह्मणवाड़ तीर्थ का उल्लेख है । श्री जयानन्दसूरिजी के उपदेश से वि. सं. 821 के आसपास पोरवाल मंत्री श्री सामन्तशाह ने कई मन्दिरों का जीर्णोद्धार करवाया था । उनमें ब्राह्मणवाड़ तीर्थ भी था। अचंलगच्छीय महेन्द्रसूरिजी द्वारा वि. सं. 1300 के आसपास रचित अष्टोत्तरी तीर्थ माला में यहाँ श्री महावीर भगवान के मन्दिर में वीर प्रभु के चरणों युक्त स्थुभ का उल्लेख है । वि. सं. 1750 में पं. श्री सौभाग्यविजयी द्वारा रचित 'तीर्थ माला' में भी यहाँ पर वीरप्रभु के चरणों का उल्लेख है। कवि श्री लावण्यसमयगणी द्वारा वि. सं. 1529, श्री श्री महावीर भगवान मन्दिर-बामनवाड़ा 386
SR No.002331
Book TitleTirth Darshan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
PublisherMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publication Year2002
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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