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________________ श्री महावीर भगवान-जिनकांची निकट ही वामन आचार्य के शिष्य पुष्पसेन के चरण चिन्ह अंकित हैं व शिला पर प्राचीन श्लोक अंकित है। ई. सं. 1199 में चन्द्रकीर्ति गुरु का वास-स्थान यहाँ होने का उल्लेख है । उनके समय में यहाँ के नरेश द्वारा इस मन्दिर से संम्बधित भूमि को करमुक्त किये जाने का उल्लेख हैं । भट्टारक श्री लक्ष्मीसेन स्वामीजी की गद्दी यहीं पर थी । यह गद्दी तिण्डिवनम से 30 कि. मी. दूर मेलचित्तामर में स्थानान्तर की गई, जो आज भी जिनकांची जैन-मठ के नाम से प्रचलित है । इस मन्दिर को त्रैलोक्यनाथ भगवान का मन्दिर भी कहते हैं । आज भी सरकारी दस्तावेजों में यही नाम प्रचलित है । अन्य मन्दिर * इस मन्दिर के अतिरिक्त उक्त उल्लिखित एक और मन्दिर श्री चन्द्रप्रभ भगवान का है। ___ कला और सौन्दर्य * इस मन्दिर के संगीत मण्डप में छत्त पर रंग-रंगीले प्राचीन चित्र अंकित हैं। श्री आदिनाथ भगवान के पाँच कल्याणक, समवसरण की रचना, श्री महावीर भगवान का जीवन कृत व श्री नेमिनाथ भगवान के पूर्व-भवों के वृत्तांत मनमोहक वर्गों में चित्रित किये गये हैं, जो बहुत ही आकर्षक लगते हैं । मार्ग दर्शन * यहाँ का कांचीपुरम रेल्वे स्टेशन मन्दिर से लगभग 5 कि. मी. दूर है । जहाँ से टेक्सी व आटो की सुविधा है । चेन्नई से यह स्थान लगभग 80 कि. मी. दूर है । मन्दिर तक कार व बस जा सकती है । सुविधाएँ * वर्तमान में यहाँ ठहरने के लिए सुविधा नहीं हैं । पेढ़ी * श्री त्रैलोक्यनाथ स्वामी जैन मन्दिर, तिरुपतिकुन्ड्रम, पोस्ट : सेविलिमेडु - 631 501. जिला : कांचीपुरम, प्रान्त : तमिलनाडु, 189
SR No.002330
Book TitleTirth Darshan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
PublisherMahavir Jain Kalyan Sangh Chennai
Publication Year2002
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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