SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 269
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 45. सामायिक का मुख्य लक्षण समता है, | 53. रजोहरण या पूंजनी आदि भी योग्य होवे, ग्रन्थकार कहते है कि साधना करते करते जिससे भली भांति जीवों की रक्षा की जा अनन्त जन्म बीत गये, मुख स्त्रिका के सके। हिमालय जितने ढेर लगा दिए, फिर भी 54. सामायिक में आभूषण श्रृंगार आदि नहीं आत्मा का कोई कल्याण नहीं हुआ, क्यों करना चाहिए। नहीं हुआ? समता के बिना सामायिक निष्प्राण है। 55. मुँहपत्ती भी सादगी से हो, माला भी कीमती चाँदी आदि की नहीं होनी चाहिए, आसन 46. सामायिक के उपकरणो में उपयोग की भी बहुमूल्य नही अर्थात कुल मिलाकर प्रधानता होनी चाहिए। उपकरण अधिक सामायिक के उपकरण सादगी से भरे ही आरंभ के, बहू मूल्य आदि न होवे, सौन्दर्य होने चाहिये। की बुद्धि न हो। 56. हमारी प्राचीन परम्परा में अनुपयुक्त अलंकार 47. उत्कृष्ट सामायिक की आराधना में साधक गृहस्थवेषोचित पगड़ी कुरता आदि की तरह दुःख असाता परीषह तो क्या? जीवन ‘मरण जीन्स आदि वस्त्रों का तो त्याग करना ही तक' की समस्याओं को भूल जाता है, चाहिये, ताकि संसारी दशा से साधना दशा उदाहरणार्थ गजसुकुमाल मुनि, मेतार्य की पृथकता मालूम हो और मनोविज्ञान से मुनि, धर्म रुचि अणगार आदि। भी धर्म क्रिया में अपने आप को अनुभव 48. आचार्य हरिभद्रसूरि लिखते है कि चाहे हो। वस्त्र भी मन को प्रेरणा के निमित्त बनते तिनका हो, चाहे सोना, चाहे शत्रु हो, चाहे मित्र पाप रहित उचित प्रवृति करना सामायिक 57. कुन्डकौलिक श्रावक के वर्णन में उन्होंने है, क्योंकि समभाव ही तो सामायिक है। नाम मुद्रिका और उत्तरीय वस्त्र अलग पृथ्वी 49. शिक्षा नाम पुनः पुनरभ्यास! शिक्षा व्रतः। शिला पट्ट पर रखकर भगवान महावीर के पास स्वीकृत धर्म प्रज्ञप्ति स्वीकार की। 50. जो अपनी आत्मा को भय से मुक्त अर्थात् 58. जैन धर्म में प्रत्येक विधि विधान द्रव्य, निर्भय भाव में स्थापित करता है, वही क्षेत्र, काल और भाव आदि लक्ष्य को लेकर सामायिक की साधना कर सकता है। रखा गया है। 51. जिस प्रकार सामायिक में काल का सभी श्रावक श्राविका पूरा पूरा ध्यान देते हैं, तो 59. स्त्री जाति के लिए पुरुष की तरह वस्त्र परिवर्तन का कोई संकेत नहीं मिलता है, उसी प्रकार द्रव्य व क्षेत्र का भी ध्यान देना चाहिए। वर्तमान में 'काल' पर पूरा पूरा अत एव सादगी युक्त पहने वस्त्रों में ही ध्यान देते हैं। बहनों में सामायिक करने की परम्परा में कोई दोष नहीं है। 52. आसन, दुपट्टा, पूजनी आदि का प्रयोग द्रव्य शुद्धि का अंग है। ‘भाव सामायिक' पर विशेष 60. द्रव्य (क्षेत्र) शुद्धि साधारण साधकों के ध्यान देना चाहिए। लिए अति आवश्यक है।
SR No.002325
Book TitleVinay Bodhi Kan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaymuni
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sangh
Publication Year2014
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy