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________________ 79. बारात में सड़को पर नाचना-नचाना बन्द | 95. बच्चो को संस्कारित बनाना है तो स्वयं हो। संस्कारवान बनो। 'चेरिटी बिगिन फ्रॉम 80. पर निन्दा करते समय अपनी आत्मा को होम’ | टटोलो। 96. किसी भी परिस्थिति में “आत्म हत्या" का चिन्तन मत करो। 81. जीवन के उतार-चढ़ाव में शान्त रहने का प्रयास करें। 97. पाँच सितारा (Five star) होटलो में अन्न, जल मत ग्रहण करो। 82. कम बोलो, अधिक सुनो। दुःखी नहीं बनोगे। 98. चमड़े की वस्तुओं का उपयोग मत करो। भयंकर पाप के भागी होते हैं। 83. कम बोलो, अधिक करो। टेन्सन फ्री रहोगे। 99. रात्रि के समय सोने से पूर्व दिन भर की 84. करुणा विहीन जीवन पत्थर के समान है। चर्या का चिन्तन करो। 85. क्रोध से प्रीति का, मान से विनय का, माया | 100. परोपकार का कार्य कल पर मत टालों। से विश्वास का और लोभ से सर्वस्व का 101. अधिक बोलनेवालों पर विश्वास मत करो। नाश होता है। 102. एक पीढ़ी संस्कारित होती है, तो तीन 86. मौन से आत्म चिन्तन को बल की प्राप्ति पीढ़ीयों को साता पहुँचती है। होती है। 103. उम्र बढ़ने के साथ पर्यटन की रुचि घटाओ। 87. मित्र की परीक्षा, संकट के आने पर होती 104. बच्चों व युवा पीढ़ी को दुःखी जीवों से परिचय करादो , जैसे अन्धाश्रम, 88. निन्दा करने से गुण प्राप्त करना कठिन अनाथालय, हड्डी का अस्पताल आदि। होता है। 105. मौज, शौक ही मानव जीवन का लक्ष्य है 89. कार्य प्रारंभ करने के पूर्व, उसके परिणाम क्या? कुछ आत्म कल्याण व कुछ पर का चिन्तन करो। कल्याण के लिए भी समय निकालो। 90. अपने मुँह मियां मिनु मत बनो। 106. अधिक संख्या व अधिक मात्रा में भोजन मत करो। 91. कष्टो का सामना करने वालों के लिये सफलता प्राप्ति सुनिश्चित है। 107. भगवान ने अधिक बैठना, अधिक जागना को रोग उत्पन्न के कारण में लिया है। 92. विनयवान को ही ज्ञान की प्राप्ति होती है। 108. दोष ढ़के नहीं जा सकते, सद्गुणों के विकास 93. नीची निगाहो से दान दो और देकर भूल द्वारा उन्हे फीका किया जा सकता है। जाओ। 109. प्रतिकूल प्रतिभाव के कारण, कहने वाले 94. कथनी करनी मे समानता रखो। की जीवन शक्ति भी क्षीण होती है।
SR No.002325
Book TitleVinay Bodhi Kan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaymuni
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sangh
Publication Year2014
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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