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________________ 47) 59) 49) 46) समुद्र व जलाशय से सामान्य केवली मोक्ष होते हैं, गणधर नहीं । (दृष्टिवाद में भजना) पधार सकते है, तथा सामान्य केवली ज. 56) तीर्थंकर भगवान के 1008 लक्षण बताए है, 1. और उ. 108 एक समय में मोक्ष पधार केवली के भजना। सकते है । तीर्थंकर कर्म भूमि से ही और ज.2 उ.4 एक समय में मोक्ष जाते है। । 57) तीर्थंकर भगवान के दीक्षा लेते समय देव दुष्य वस्त्र उनके कन्धे पर होता है, सामान्य तीर्थंकर बननेवाला जीव 5 लेश्या का केवली के नही । (कृष्ण लेश्या को छोड़कर) आया हुआ हो सकता है, सामान्य केवली 6 लेश्या से तीर्थंकर भगवान पूरे भव में तीन शरीर आया हुआ जीव हो सकता है । (औदारिक, तैजस, कार्मण) ही पाते हैं, सामान्य केवली के भव में पाँच शरीर पा 48) तीर्थंकर भगवान, अपने भव में पांच ज्ञान सकते है। को स्पर्शते ही हैं, जब कि केवली के भजना । तीर्थंकर भगवान 13 और 14 वें गणस्थान तीर्थंकर भगवान में मध्यम अवगाहना ही | में पाँच योग पाते हैं | सत्यमन, व्यवहार पाई जाती है, जबकि केवली में जघन्य, मध्यम, व उत्कृष्ट तीनों ही अवगाहना पाई मन, सत्य वचन, व्यवहार वचन, और जर्त हैं। औदारिक काय योग, केवली मे 5 या 7 योग, औदारिक मिश्र और कार्मण योग, 50) तीर्थंकर भगवान में तीन नियंठे निर्ग्रन्थ, जब केवली समुद्घात करते हो तो औदारिक कषाय- कुशील व स्नातक ही पाते है, जब मिश्र काया योग व कार्मण योग होता है। कि केवली अपने पूरे भव में छहो नियंठे पा सकता है, 1) पुलाक, 2) बकुश, 3) तीर्थंकर भगवान की आगति 38 जगह से प्रतिसेवना, 4) कषाय- कुशील, 5) निर्ग्रन्थ (देवता, नारकी) और सामान्य केवली की तथा 6) स्नातक । आगति 108 जगह से (4 गति से) है | 51) तीर्थंकर भगवान, तीर्थंकर पद व साधुपने तीर्थंकर भगवान से सामान्य केवली हमेशा में रहते हुए किसी दोष का सेवन नहीं करते संख्यात गुणा अधिक रहते हैं | है, जबकि केवली अपने भव में (भजना) | तीर्थंकर भगवान लोक के असंख्यातवें भाग में छमस्थ अवस्था में दोष लगा सकते हैं। रहते है। केवली, केवली समुद्घात की, अपेक्षा तीर्थंकर सर्वोच्च उपकारी पद माने गये हैं, सम्पूर्ण लोक में विद्यमान हो सकते है। परन्तु सामान्य केवली को नहीं । सामान्य केवली, केवल ज्ञान होने के क्षमाशूर तीर्थंकर भगवान को माना गया है, अन्तरमहुर्त बाद मोक्ष पधार सकते हैं। जब सामान्य केवली या किसी अन्य को नही । कि, तीर्थंकर भगवान वर्षों तक विचरते हैं। 54) छदमस्थ तीर्थंकर भगवान शिष्य नहीं बनाते, 64) तीर्थंकर पद मध्यम वय में ही प्राप्त होता छद्मस्थ साधु (भावी केवली) शिष्य बनाते | है, जबकि सामान्य केवली बालवय, युवावय भी है। व वृद्धावय मे भी होता है। 55) तीर्थंकर भगवान के गणधर नियमा दृष्टिवादी | 65) तीर्थंकर भगवान एक दिन मे 20 मोक्ष जा ही (14 पूर्वधारी) होते है, केवली के शिष्य । सकते है, जबकि केवली एक दिन में प्रत्येक
SR No.002325
Book TitleVinay Bodhi Kan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaymuni
PublisherShwetambar Sthanakwasi Jain Sangh
Publication Year2014
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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