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________________ असत्य बोलने से होने वाली हानियाँ असत्य के फलस्वरूप गूगापन, तोतलापन तथा मुंह के विविध रोग होते हैं। ऐसा समझकर विवेकी मनुष्यों को असत्य का त्याग करना जरूरी है। असत्य बोलने से संसार में अपमान होता है। यह मनुष्य झूठा है' ऐसी निंदा होती है और परलोक में अधोगति हातो है। जिस वस्तु को स्वयं न जानते हो या जिसमें अपने को शंका हो, ऐसी स्थिति में बुद्धिमान् को प्रमाद से भी असत्य न बोलना चाहिये। जो बात हो उसको छिपाना, न हो उसे बताना, वास्तविक बात से अलग कहना, किसी को सदोष प्रवृत्ति में प्रेरित करना, किसी को अप्रिय वचन कहना, किसी को गाली देना आदि, असत्य वचनों से कल्याण का नाश होता है। कुपथ्य करने से जैसे व्याधियाँ उत्पन्न होती हैं वैसे असत्य बोलने से वैर, विरोध, विषाद, पश्चाताप, अविश्वास, अपमान आदि अनेक दोष उत्पन्न होते हैं। असत्य बोलने से जीवों को निगोद, तिर्यंच और नरकगति प्राप्त होती है। भय से या स्नेही मनुष्य के आग्रह से भी कालिकाचार्य ने असत्य नहीं कहा। अतः असत्य नहीं बोलना चाहिये। जो मनुष्य भय से या आग्रह से असत्य बोलता है, वह वसुराज की तरह नरक का अधिकारी होता है। बल्कि कटु सत्य जिससे दूसरों को पीड़ा पहुँचे ऐसा वचन भी नहीं बोलना चाहिये। दूसरे का प्राण जाय ऐसा सत्य बोलकर कौशिक तापस ने नरकगति का बंध कर लिया। मतलब यह है कि कौशिक तापस को शिकारियों ने पूछा कि मृग का झुण्ड किधर गया है ? तापस ने जिस तरफ मृग का झुण्ड गया था, वह मार्ग बता दिया। इससे शिकारियों ने मृगों का नाश किया। इस तरह बिना सोचे-समझे वचन बोलने से वे जीव श्रावकवत दर्पण-१२
SR No.002324
Book TitleShravakvrat Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundakundacharya
PublisherSwadhyaya Sangh
Publication Year1988
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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