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________________ में लाभ और भगण एवं यगण इन दो गणों से संयुक्त प्रश्नाक्षर हों तो रात में लाभ होता है। यदि जगण और रगण इन दो गणों से संयुक्त प्रश्नाक्षर हों. तो दिन में हानि एवं सगण और तगण इन दो गणों से संयुक्त प्रश्नाक्षर हों तो रात में हानि होती है। जगण, रगण, सगण और तगण इन चार गणों से संयुक्त प्रश्नाक्षर हों तो कार्यहानि समझनी चाहिए। लग्नानुसार प्रश्नों का फल निकालने का प्राचीन नियम इस प्रकार है कि ज्योतिषी की पूर्व की ओर मुख कर मेष, वृष आदि १२ राशियों की कल्पना कर लेनी चाहिए और पृच्छक जिस दिशा में हो उस दिशा की राशि को आरूढ़ लग्न मानकर फल कहना चाहिए। उपर्युक्त नियम का संक्षिप्त सार यह है-मेष, वृष आदि बारह राशियों को लिखकर उनकी पूर्वादि दिशाएँ मान लेनी चाहिए अर्थात् मेष और वृष-पूर्व, मिथुन, कर्क, सिंह और कन्या दक्षिण, तुला और वृश्चिक पश्चिम एवं धनु, मकर, कुम्भ और मीन उतर संज्ञक है। निम्न चक्र से आरूढ़ लग्न का ज्ञान अच्छी तरह हो सकता है। आरूढ़ राशिबोधक चक्र पूर्व १ । २ । १२ । उत्तर । १० ५ दक्षिण पश्चिम उदाहरण-मोतीलाल प्रश्न पूछने आया और वह पूर्व की ओर ही बैठ गया। अब यहाँ विचार करना है कि पूर्व दिशा की मेष और वृष इन दो राशियों में से कौन-सी राशि को आरूढ़ लग्न माना जाए? यदि मोतीलाल उत्तर-पूर्व के कोने के निकट है तो मेष और दक्षिण-पूर्व के कोने के निकट है तो वृष राशि को आरूढ़ लग्न मानना चाहिए। विचार से पता लगा कि मोतीलाल दक्षिण और पूर्व के कोने के निकट है, अतः उसकी आरूढ़ लग्न वृष मानना चाहिए। आरूढ़ लग्न निकालने के सम्बन्ध में मेरा निजी मत यह है कि उपर्युक्त चक्र के अनुसार बारह राशियों को स्थापित कर लेना चाहिए, फिर पृच्छक से किसी भी राशि का स्पर्श कराना चाहिए, जिस राशि को पृच्छक छुए, उसी को आरूढ़ लग्न मानकर फल बताना चाहिए। फल-प्रतिपादन करने के लिए आरूढ़ लग्न के साथ लग्न का भी विचार १. बृ. पा. हो., पृ. ७४०। ७४ : केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि
SR No.002323
Book TitleKevalgyan Prashna Chudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages226
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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