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________________ इष्टकाल बनाने के नियम - १. सूर्योदय से १२ बजे दिन के भीतर का प्रश्न हो तो प्रश्न समय और सूर्योदय काल का अन्तर कर शेष को ढाई गुना (२1⁄2) करने से घट्यादि रूप इष्टकाल होता है। जैसे - मान लिया कि सं. २००१ वैशाख शुक्ल द्वितीया, सोमवार को प्रातःकाल ८ बजकर १५ मिनटपर कोई प्रश्न पूछने आया तो उस समय का इष्टकाल उपर्युक्त नियम के अनुसार; अर्थात् ५ बजकर ३५ मिनट सूर्योदय काल को आने के समय ८ बजकर १५ मिनट में से घटाया तो (८.१५ ) - ( ५.३५) = (२.४०) इसको ढाई गुना किया, तो ६ घटी ४० पल इष्टकाल हुआ । २. यदि २ बजे दिन से सूर्यास्त के अन्तर का प्रश्न हो तो प्रश्न समय और सूर्यास्त काल का अन्तर कर शेष को ढाई ( २/1⁄22) गुना कर दिनमान में से घटाने पर इष्टकाल होता है। उदाहरण-२००१ वैशाख शुक्ल द्वितीया, सोमवार २ बजकर २५ मिनट पर पृच्छक आया तो इस समय का इष्टकाल निम्न प्रकार हुआ - सूर्यास्त ६.२५ - प्रश्नसमय २.२५ = ४.० इसे गुना किया तो = १० घटी हुआ। इसे दिनमान ३२ घड़ी ४ पल में से घटाया गया, तो (३२+४) – (१०.०) = २२ घटी ४ पल यही इष्टकाल हुआ । ху २ - ३. सूर्यास्त से १२ बजे रात्रि के भीतर का प्रश्न हो तो प्रश्न समय और सूर्यास्त काल का अन्तर कर शेष को ढाई गुना कर दिनमान में जोड़ देने से इष्टकाल होता है। जैसे - सं. २००१ वैशाख शुक्ल द्वितीया सोमवार को रात के १० बजकर ४५ मिनट का इष्टकाल बनाना है । अतः १०.४५ - प्रश्नसमय ६.२५ सूर्यास्तकाल == ४.२० = X . पल = १० घटी ५० पल हुआ । इसे २० ६५ ५, =8== ६० ४३ ३ २ ६ १०६ ५० दिनमान ३२ घटी ४ पल में जोड़ा, तो ( ३२.४) + (१०.५० ) = (४२.५४) = ४२ घटी ५४ पल इष्टकाल हुआ । ४. यदि १२ बजे रात के बाद और सूर्योदय के अन्दर का प्रश्न हो तो प्रश्न समय और सूर्योदयकाल का अन्तर कर शेष को ढाईगुना कर ६० घड़ी में से घटाने पर इष्टकाल होता है। उदाहरण-सं. २००१ वैशाख शुक्ल द्वितीया, सोमवार को रात के ४ बजकर १५ मिनट का इष्टकाल बनाना है । अतः उपर्युक्त नियम के अनुसार - ५.३५ सूर्योदय काल - ४. = २० = ३ घटी २० १ १३ ५ X = ३ १५ प्रश्न समय = १.२० =१ = १ = × 3 = ? = ३× पल हुआ; इसे ६० घटी में से घटाया, तो (६०.० ) - ( ३.२० ) ४० पल इष्टकाल हुआ । = बिना' घड़ी के इष्टकाल बनाने की रीति - दिन में जिस समय इष्टकाल बनाना हो, उस समय अपने शरीर की छाया को अपने पाँव से नापें, परन्तु जहाँ पर खड़े हों, उस (५६.४० ) M = ५६ घटी १. “भागं वारिधिवारिराशिशशिषु (१४४) प्राहुर्मृगाधे बुधा; षट्के बाण-कृपीटयोनिविधुषु (१३५) स्यात् कर्कटाचे पुनः । पादैः सप्तभिरन्वितैः प्रथमकं मुक्त्वा दिनाधे दले, हित्वैकां घटिकां परे च सततं दत्वेष्टकालं वदेत् ॥” - भु. दी., पृ. ३६ । केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि : ६५
SR No.002323
Book TitleKevalgyan Prashna Chudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages226
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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